Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah
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BARAGRAMMAR
9 मोह अंग मोटपने टालो, ए पाप प्रकृति दुःखदा॥चतुर ए 9॥६॥ उपशम अन्नावे परमां पेसे, परथी बुटे नांहि॥ ते १ ६ कारण उपशम श्रादरीये, सहीए निज घर लघुता त्यांहि |
॥ चतुर० ॥ ७॥ उपाधि रोकण अति बळीयो, उपशम
जाव कहावे ॥ उपाधि एक ध्वंस करणकुं, ज्ञान वमो श्रागु ६ थावे ॥ चतुर ॥ ७॥ उपशम श्रेणीये उपशम धागु, गण
एकादशमे अटके॥ अंतर महुरत एकज रहेवे, तीहांथि उदय आवीने पटके ॥ चतुर० ॥ ए॥ क्षपक श्रेणीये ज्ञान 6 थार, उपशम पाळ लागु ॥ उपशमे उदय उपाधि अ
व्यापक, उपाधि हणे ज्ञान जागु ॥ चतुर० ॥ १० ॥ घाति २ कर्म उपाधि खुटे, सत्ता उदय न लाधे ॥अरिहंत सजोगी। है एही, आयु मे योग रोध साधे ॥ चतुर०॥ ११ ॥श्रघाति उचउ कर्म अन्नावे, सिद्ध सनातक थावे ॥ ज्ञान शीतळ ए निरंजन निर्मळ, समश्रेणीये सिद्ध सधावे॥चतुर॥१॥
सम्झाय ॥ ९॥ मी ॥ आयु अथिरनी ॥ ॥ ऋषननो वंश रयणायरु ॥ ए देशी.॥
आयुष्य तुटयाने सांधो को नहीं, चतुर चित्तमां चेतोरे॥ काळ क्षण क्षण आयु बेदतो, बेसी क्षणे मरण देतो
रे ॥ आयुष्य त्रुटयाने सांधो को नह। ॥ ए आंकणी ॥ 99 गाथा ॥ १॥ ते कारण प्रमाद परहरो, ग्रहो स्वरूप उप
योगरे ॥ ज्ञान दर्शनादि तीहां संपजे, करे सकाम निर्जरा निरोगरे ॥ आयु०॥२॥ मिथ्यात्व कषाय जीहां टळे, टळे ,
अझान अंतरायरे ॥ रागढेष मोह सवि टळे, तीहां क्षीण ६ HARIBAGrandal
BIG.GAR
mormone
(२८०)
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