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श्री शु३तिनो रास.. १ मोह वीतराग थाय रे ॥ आयु०॥३॥ए निरोगी पुनरपि
मरे नहीं, न जन्मे चउगति संसाररे ॥ केवळनाण दर्शण 5 खहा, अमरपद सिद्ध निरधाररे ॥ श्रायु० ॥४॥ एम था
युष अथिर विचारतां, अप्रमत्त गण न बोमेरे ॥ क्षपक
श्रेणि अपूर्वे मांमीने, शुक्लध्याने कर्म सवि तोमेरे ॥ श्राहै यु० ॥५॥ जन्म जरा मरण काळथी, कह्यो बुटवानो उ
पायरे ॥ ज्ञान शीतळ करी जे लहे, ते जीवन मुक्त कहायरे ॥ श्रायु०॥ ६॥
॥ इति सज्झाय अधिकार संपूर्ण.॥ ॥ अथ श्री गुरु नक्तिनो रास लिख्यते ॥
॥ दुहा ॥ प्रणमुं श्री गुरु रायने, बोधि बीज दातार ॥ शिव सुख हेतु ए जला, मोद विदारण हार ॥१॥ गुरु नक्ति गुण गाश्शु, रास रचुं मनोहार ॥ ढाळ बंध रचना करूं, त्यां प्रमोद नावना सार ॥२॥ गुरुगुण रत्न चिंतामणी, गुरु वच हे रसकूप ॥ गुरु ज्ञान पंथ शीवनो, गुरु अनुन्नव शीव रूप ॥३॥ गुरु दर्शन पूरव दिशी, गुरु मुख पुनमचंद ॥ गुरु विनय मूळ धर्मर्नु, गुरु शीव सुखकंद ॥४॥ गुरु थाज्ञा पारस मणी, गुरु शिक्षा सुर कुंन्न ॥ गुरु रागथी सिद्धि ऋद्धि, गुरु स्मरण चित्त शुन्न ॥ ५॥
॥ ढाळ ॥ १॥ ली॥ . समुष विजय कुळ चंदलो जीन वंदिये ॥ ए देशी ॥ ___वस्तु सत्ताना जाण रे॥ गुरु वंदीये ॥ हुकम मुनि NAGARIKwas 836
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