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અધ્યાત્મ ચોવીશી. मुज चेतन शुद्ध, तुज कृपाए थश्ये बुद्ध ॥ सा० ॥ ३ ॥ तुज गुणनो मुज रंग अन्नंग, तुज मुज बेउनुं कर, एकंग ॥ सा० ॥ तुजवीण बीजुं न गमे बाज्य, संसार सागर तरवा तुं माहाज ॥ सा ॥४॥ सुणी विनति मील्या अरनाथ, सत्ता शक्तिये त्यां त्रिजुवन नाथ ॥ सा० ॥ वात करे तुज मुज रूप एक, शक्तिमां नही कोश् अन्यनो नेग ६ & ॥ सा० ॥ ५॥ व्यक्तिमां अंतर पनी सार, निर्मळ , है समळनो नेद विचार ॥ सा० ॥ ज्ञान शीतळ श्रद्धा एम 6 धार, स्थिति पाके तुं सिद्ध वधु नरथार ॥ सा० ॥ ६ ॥
संपूर्ण. ॥ स्तवन ॥ १९ मुं ।। ॥ दीठी हो प्रन्नु ॥ ए देशी ॥ मूरती हो प्रनु मूरती मलि जिणंद, ताहरी हो प्रनु ताहरी अनंत गुणे नरीजी॥ केवळ हो. प्रनु केवळ ज्ञानदर्शन, चरण हो प्रजु चरण यथाख्यात मय गरीजी ॥१॥ दान लान हो प्रजु दान लान आत्मा अन्नेद, नोग हो प्रनु लोग उपनोग स्वगुण महीजी ॥ वीर्य हो प्रन्नु वीर्य स्फुरणा अनंत, अप्रयास हो प्रनु अप्रयास अन्य सदाय नहीजी ॥२॥ दायक हो प्रत्न दायक लब्धि ए पांच
सादी हो प्रन सादि अनंत नांगे कहीजी ॥ अबतक हो ६ प्रन अबतक कदीए न होय ॥ गुण सव्वे हो प्रन गुण , 5 सब्वे त्रिविध परिणती ग्रहीजी ॥ ३॥ व्यक्ति हो प्रनु है के व्यक्ति निन्न नेद अनंत ॥ प्रगटे हो प्रनु प्रगटे तेथी PAGAIREratoragar
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