________________
३४
चंदराजानो रास. शून्यपणुं चार्वाकमति कहेरे, माने प्रत्यक्ष प्रमाण ॥ वस्तु सकल डे क्षणिक अनुमानथी रे,ए सौगत मति जाण ॥६॥३॥ शब्दप्रमाण प्रमाणे वैशेषिकारे, सांख्य शब्द सानुमान ॥प्रगटानुमान शब्द उपमानने रे,एनैयायिकसान ॥५॥४॥
अर्थ ॥ चार्वाक मतवाला जगतने शून्य गणी प्रत्यक्ष प्रमाणने मानता हता; बौद्ध मतवाला “ सर्व वस्तु क्षणिक" एम अनुमान प्रमाणथी मानता हता॥३॥ वैशेषिक मतवाला शब्द प्रमाण मानता हता, सांख्य मतवाला शब्द अने अनुमान प्रमाणने मानता हता, अने न्याय मतवाला प्रगट अनुमान, शब्द भने उपमानने मानता हता ॥४॥ प्रत्यक्ष श्रने अनुमान प्रमाणने रे, नाखे जैन अनूप ॥ कोइ कहे ए कर्त्ताये कों रे, सुंदर जगत् सरूप ॥६॥५॥ जगत् ए ज्ञानमयी कोश्क कहेरे, स्वजाव जनित कहे कोय ॥ को कहे जग शशकश्रृंगोपमारे, वंध्या सूत सम होय ॥ पं० ॥६॥
अर्थ ॥ जैनमतवाला प्रत्यक्ष अने अनुमान प्रमाणने मानता हता. कोश आ जगतना सुंदर स्वरूपनो कर्ता एम मानता हता ॥५॥ कोई आ जगत्ने ज्ञानमय कहेता हता. कोश् जगत्ने स्वजाव जनित कहेता हता, कोश् ससलाना शींगडा जेवू एने वंध्याना पुत्र जेवू असंजवित कहेता हता. ॥६॥
घटपटघटना म सहुको घटे रे, अंधगयंदने न्याय ॥ व्युत्पत्ति शब्दतणी करे शाब्दिकारे,उदर नरण उपाय ॥५॥७॥ वेदोच्चार करे बहु वेदीयारे,करता कर श्रास्फाल ॥ साहित्य पाठी साहित्य उच्चरे रे, प्रश्न करे नूपाल ॥ ५० ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ न्याय जाणनारा घटपटनी घटनाथी सर्व घटावता हता; शब्द जाणनारा उदरनुं नरण करवाना उपायरूप शब्दनी व्युत्पत्ति करता हता ॥ ७॥ वेदीआ लोको हाथ उगली वेदनो उच्चार करता हता. साहित्य जाणनारा साहित्य कहेता हता, अने राजा चंद प्रश्न करता हता ॥ ७॥
काव्य करे वेत्ता अलंकारना रे,पूरे समश्या संघ॥वांचे पुराण पौराणीक परवडारे, रामायण संबंध ॥पंगा जल अन पय तरू फल दल फूलनारे,गुण कहे जोई शास्त्र ॥ निपुण श्रादान निदान चिकित्सा विषेरे, वैदश्शा बुद्धिपात्र ॥ पं० ॥१०॥ अर्थ ॥ श्रलंकार जाणनारा काव्य करता अने समश्या पूर्ति करता हता, अने पुराणी, पुराण अने रामायण वांचता हता॥ ए॥ निदान अने चिकीत्सा करवामां कुशल एवा बुद्धिमान वैद्यो शास्त्र जोश्ने जल, अन्न, वृक्ष, फल, पत्र अने पुष्पना गुण कहेता हता ॥१०॥ घन मूल वर्गमूलादिक गणितनो रे,अति परिचय ने जास जाणे समबेदादिक मानने रे,करे पंचांग प्रकाश पं॥११॥ साधे रव्यादिक ग्रह गगने थकारे, वर्ते ग्रहण शशिसूर ॥ जाणे खगोल अने नूगोलने रे, हृदय सिफांते पूर ॥ पं० ॥१॥
अर्थ ॥ केटलाएक घन मूल अने वर्गमूल विगेरे गणितनो परिचय करनारा हता, अने ते समच्छेद विगेरे जाणी पंचांगनो प्रकाश करता हता ॥ ११ ॥ केटलाएक सूर्यादिक ग्रहोने आकाशमाथी साधता हता, सूर्य चंजनुं ग्रहण वर्तता हता अने हृदय सिद्धांतथी खगोल अने जूगोल जाणता हत्म ॥१२॥
Jain Education International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org