Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 387
________________ चंदराजानो रास. यदि कंचुकी अनुमान ॥ १ ॥ अनुज योगे श्रादयुंजी, शुद्ध क्रिया अनुष्टान ॥ ए कणी ॥ लुंचन कीधो केशनोजी, चंदे नाख्या खेडी जाणीएजी, ए तो कर्म तरुनां मूल ॥ थइ अनुकुल ॥ ० ॥ २ ॥ ॥ पी चंदराजा पोताना शरीर उपर धारण करेलां श्रभूषणो बोजा समान जाणीने तजी दीघां. जेम सर्प कांचलीने तजी दे तेवीरीते वस्त्रादि श्राभूषणो उतारतां देखाव थयो. आत्मस्वरूपना अनुजवने योगे शुद्ध क्रिया-अनुष्ठाननो आदर कर्यो. ॥ १ ॥ पछी केशनो लोच चंदराजाए कर्यो तेजाणे सानुकूलताए कर्मरूपी वृनां मूलो उखेडी नांख्या होय तेवुं जणायुं. ॥ २ ॥ ३१७ चंदने मस्तके जी, श्री जिनजीये वास ॥ शिववधु वश करवा जणी जी, चूर्ण एकीध प्रकाश ॥ श्र० ॥ ३ ॥ धर्मध्वजने मुहपतिजी, आपे चंदने नाथ ॥ अंतर वैरी जीतवाजी, जाणे खड्ग खेटक ग्रह्यं हाथ ॥ ० ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ नंतर श्री जिनराजे चंदराजना मस्तक उपर वासदेप कर्यो. तेजाणे शिववधुने वश करवा चूर्ण ढांटयुं होय एवो प्रकाश अयो. ॥ ३ ॥ पढी प्रभुजीए चंदराजाने उंघो तथा मुहपतियां अंतरंग शत्रुर्जने जीतवा हाथमां तलवार तथा ढाल श्राप्यां होय तेवुं जायुं ॥ ४ ॥ श्री चंदराज रूषी थयाजी, मुनि सुव्रत उपदेश ॥ नर सुरे कीधी वंदनाजी, कहे धन धन सकल सुरेश ॥ श्र० ॥ ५ ॥ सुमति मंत्रीए जावथीजी, लीधो संयम जार ॥ राज कृतिनुं मंत्रीपपुंजी, तेणे राखुं करी निरधार ॥ श्र०॥६॥ ॥ श्री मुनिसुव्रतस्वामिना उपदेशे श्री चंदराय राजर्षि थया. मनुष्य ने देवता सर्वेए वंदना करी. देवोना स्वामि सर्व इंजोए धन्यवाद प्यो. ॥ ५ ॥ सुमति मंत्रीए पण जावपूर्वक चारित्र श्रुंगीकार कर्यु. तेर्जए संयम सीधाथी राजर्षि चंदरायनुं मंत्रीपणुं निश्चय पूर्वक साचव्यं ॥ ६ ॥ दीक्षा लीधी शिव नटेजी, नटगति परही मेल ॥ लोक वंशना अग्रनोजी, सदी मांड्यो दुर्घट खेल ॥ श्र० ॥ ७ ॥ गुणावली वली प्रेमलाजी, शिवमाला मनु हार ॥ बीजी पण वली राणीएजी, तिहां लीधो संयम जार ॥ ० ॥ ८ ॥ Jain Educationa International || शिवकुंवर नटे पण नटपणुं तजीने दीक्षालीधी. चौदराज लोकरूपी वांसना अागने प्रासकरवाने ति दुर्घट एवो खेल शरुकर्यो. ॥ ७ ॥ राणी गुणावली तथा प्रेमलाल ने सुंदर नटवी शिवमाला तथा बीजी पण राणीए चारित्रधर्म अंगीकार कर्यो. ॥ ८ ॥ जापुरथी स्वामिएजी, विधिथी कीध विहार ॥ चंद महाकषी परवर्याजी, इ आपणो परिवार ॥ श्र० ॥ ए ॥ गुणशेखरादि संप्रेमवाजी, श्राव्याज्यां लगी सीम ॥ श्री जिनराज तथा मुखेजी, घणे अंगीकर्यां व्रतनीम ॥ श्र०॥१०॥ अर्थ | पी चंदराजर्षि पोताना परिवारनी साथे परवरेला श्राजापुरी श्री विधिपूर्वक विहार करवाने तैयार था. ॥ ए ॥ गुणशेखर प्रमुख राज्यमंडल ज्यां सुधी राज्यनो सीमाको दतो त्यां सुधी बोलाववाने व्या. ते वखते श्री जिनराजना मुखथी अनेक लोकोए व्रतनियम अंगीकार कर्या. ॥ १० ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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