Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 393
________________ चंदराजानो रास. ३२३ ॥ ढाल ३३ मी॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ श्री चंद केवली योग निरूंधी, पंचम स्वर स्थिति जाणेजी ॥ शेष कर्म तजी चढया थजोगी, चौदसमे गुण गणेजी ॥१॥ अनंतवीर्य, अखेद, अतींजिय, अक्षयता ए चारेजी ॥ जेहमां लोली थश्ने उरध, करी गति श्री चंद प्यारेजी ॥२॥ अर्थ ॥ श्रीचंद केवली सर्व कर्मनो नाश करी, सर्व योगनुं रूंधन करी ज्यां मात्र पांच ह्रस्वाक्षर जेटलुं काल मान ने एवा चौदमा अयोगी गुण स्थानके चड्या ॥१॥ अनंत वीर्य १ अखेद पणुं, ५ अतींप्रिय पणुंरू, अने श्रदयता ४ ए चारे मय श्रश्ने वहाला चंद राजर्षिए उर्ध्व गमन कयु.॥२॥ सब सिद्धथी बारह जोयणे, शशिप्प नारा पुरवीजी॥ तिहां जोयण चोवीसमे नागे, अवगाहना संनववीजी ॥३॥ ए लोकाय अलोक ने श्रागल, श्हां सकल अदेही जी ॥ ज्योति ज्योति मांदे जश मिलीया, श्री चंद सिझ सनेही जी ॥ ४॥ अर्थ ॥ सर्वार्थ सिद्ध नामना पांचमा अनुत्तर विमानथी बार योजन उपर षत् प्राग्जारा नामनी पृथ्वी जे सिद्ध शिला नामे पीसतालीस लाख योजननी ने त्यां एक योजनना चोवीसमा लागे अवगाहना करी रह्या ॥ ३॥ ए नाग लोकनो अग्रनाग-सहुथी उंचामां उंचो ने तेनी उपर अलोक जे. लोकाग्रमां सर्व अदेही-सिख जे. ज्योतिमां ज्योति मले तेवी रीते सिमां श्रीचंद मली गया. ॥४॥ सादि अपर्यवसितता पामी, जव चमणा सवि बुटी जी ॥ पाम्यु पूर्ण निरंजन, पद, लीला सहजे श्रखुटी जी ॥५॥ सुमति साधु शिव साधु गुणावली, प्रेमला लबी साहुणी जी ॥ लही केवल शिव संपद पाम्या, प्रसरी कीर्ति प्रगुणी जी ॥६॥ अर्थ ॥ सादि अपर्यवसितता एटले मोक्ष पाम्या ते आदि अने हवे पठी त्यांची पडवानुं नथी तेश्री अनंत एवी सादि अनंत स्थिति प्राप्त करी. संसारमा जन्म मरणथी बुटया. पूर्ण निरंजन पद प्राप्त कर्यु: अने संसारी लीलानो अनाव अतां सहज आत्म स्वरूपनी लीला अखुट पणे प्राप्त थ ॥ ५॥ सुमति साधु, शिव साधु, गुणावली अने प्रेमला लब्बी साध्वी केवल ज्ञान पामी मोक्ष पद पाम्यां. तेउनी कीर्ति जगमां बहुज प्रसरी. ॥ ६॥ शिव मालादिक श्रवर सादुणी, सवकसिके पहोती जी ॥ महा विदेह मांहे अवतरीने, लहेशे ते पण मुक्ति जी ॥ ॥ एहवा शियल तणे अधिकारे, चंद तणा गुण गायाजी ॥ इणि परे जे पाले ब्रह्मचर्यव्रत, ते लदे सुख सवायां जी ॥७॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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