________________ 326 चतुर्थउबास. // कलस // एचरित्र सागर ढुंती निरखी, यत्न सुर गिरि आचर्यो, चंद नृप संबंध शशि जेम, अतिही प्रनाकर उझर्यो // श्री विजय देम सुरीद राज्ये, करी परम गुरू वंदना, कवि रूप सेवक मोहन विजये, वर्णव्या गुण चंदना // 1 // अर्थ // पूर्वना चरित्ररूप महा सागरमांधी यत्न रूपी मेरू पर्वत वडे मंथन करी, चंद राजाना आ चरित्र रूपी अत्यंत प्रकाश कर, चंने प्राप्त कर्यो. श्री विजय मा सूरिना शासनमां परम कृपावंत गुरू श्री रूपविजयजीने वंदना करी मोहन विजयजीए चंद रायना गुणनुं वर्णन कर्यु. // 1 // इति श्री मोहन विजय विरचिते चंदचरित्रे प्राकृत प्रबंधे चंद प्रकटन 1, वीरमती वध 2, बाजा गमन 3, संयम ग्रहण 4, शिव पद प्राप्ति 5 रूपानिः पंचनिः कलानिः समर्थितोऽयं चतुर्थोवासः संपूर्णः // आ रासमां प्रथम नवासमां ढाल एकवीश गाथा 514, दितीय उल्लासमां ढाल त्रेवीस, गाथा 585, तृतीय जहासमा ढाल एकत्रीस, गाथा 753 अने चतुर्थ उल्लासमां ढाल तेत्रीस गाथा 727, सर्व मली नवास चारमा ढाल एकसो आठ, गाथा २६७ए बे. // श्री चंदराजानो रास नाषांतर सहित // // समाप्त // Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org