Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 362
________________ श‍ चतुर्थ उल्लास. रूपना गृहमां प्रवेश करी प्रधान केवल ज्ञान प्राप्त करे ॥ १९ ॥ पी लेशीपणुं प्राप्त यतां, कर्म बंधना देतुनो व थतां, एरंडना बीजने दृष्टांते, बेवढे परमात्म स्वरूप थइ मोक्षगतिमां सीधुं उई गमन करी । जागनी पोताना शरीरनी अवगाहनामां स्थिति करे. ॥ २० ॥ एम जाणीने रे धर्म समाचरो, जेद बे श्रहिंसा मूल रे ॥ शिव सुख साधन एह विना नथी, राख जो करी अनुकूल ॥ श्री० ॥ २१ ॥ शांति सुधारस मांदे कील जो थाजो तत्त्व निदर्शी रे ॥ लेहेजो चिदानंद नित्यानंदता, कर कंकण शी आदर्शी रे ॥ श्री० ॥ २२ ॥ अर्थ || श्री जगवंत कहे बे के दे जन्य प्राणी ! वी रीते संसारनुं स्वरूप जाणीने धर्म जे अहिंसा मूल बेतेनो आदर करो. ए धर्म विना मोक्ष सुखनुं बीजुं एक पण साधन नथी. माटे अहिंसा धर्मने सानुकुल राखजो. अर्थात् श्रहिंसामय वृत्ति करजो ॥ २१ ॥ शांतरसरूपी अमृत रसमां स्नान करजो. तत्त्व स्वरूपना ज्ञाता थजो. जेथी चिदानंद स्वरूप जे निरंतर आनंद रूप बे ते प्राप्त करशो. हाथमां कंकण होय तेने जोवा सारू रिसानी शी जरूर बे. ॥ २२ ॥ हो व प्राणी रे एम जाणी करी, करो अनुभवथी प्रसंग रे ॥ चोथा उल्लासनी ढाल बावीसमी, कहे मोहन मन रंग रे ॥ श्री० ॥ २३ ॥ || जय प्राणी ! या प्रमाणे आत्म तत्त्व स्वरूपने जाणीने तेना अनुजवनो प्रसंग साधो एवी रीते चोथा उल्लासनी बावीसमी ढाल मोहन विजयजीए हर्ष सहित कही. ॥ २३॥ ॥ दोहा ॥ जिनवाणी मिरस श्रवण, पात्र जरी जरी चंद ॥ पाइ चिद् ज्ञानी जी, कर्यो घणो सानंद ॥ १ ॥ रोम रोम उल्लसित थया, वायो रंग वैराग ॥ पामी अवसर विनवे, जिनजीने महाजाग ॥ २ ॥ ॥ मृत रस रूप जिनेश्वर जगवाननी वाणी कर्ण रूप पात्रमां चंद राजाए वारंवार जरी जरीने पोताना अंतरात्माने पाइने घणोज आनंद उत्पन्न कर्यो ॥ १ ॥ पोताना रोमराय ( साडात्रण क्रोड ) विकस्वर था. वैराग्य रंग वध्यो एटले महा जाग्यना स्वामि चंदराये जिनराजने नीचे प्रमाणे विनंति करी. २ विजननीये मुज वश कर्यो, फिर्यो नटोने संग ॥ मकरध्वज धूव कर चढयो, यो नर सुगिरि प्रसंग ॥३॥ कपट कर्यु केम हिंसके, केम सिंहल सुत रोग ॥ पटराणी थी केम थयो, मुजयी करी संयोग ॥४॥ अर्थ || हे प्रभु ! मारी उरमान माताए मने पंखी रूपे परवश करी दीधो, नटोनी संगे हुं चोमेर फर्यो, मकरध्वजनी पुत्रीना हाथ उपर चढी उत्तम गिरिराजने जेटतां फरी पुरुष थयो; वली ॥ ३ ॥ हिंसक मंत्री मारी साथे कपट श्राचरण कर्यु, सिंहल रायना पुत्रने रोग थयो, अने मारी गुणावली पटराणी साथे मने फरी मेलाप थयो, ते सर्वेनो- ॥ ४॥ एह कथा मुज सद्यो, प्रजो त्रिजगदाधार ॥ तुम सम कोण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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