Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 334
________________ २६४ चतुर्थ उल्लास. अर्थ || वीरमती मरण पाम्याना समाचारनो ढंढेरो पिटावतांज श्रानगरमां ते वात फैलाइ गइ अने ते समाचार सांगतांज सर्वनां मन संतोष पाम्यां ॥ ५ ॥ चंदराजानुं साल गयुं ने देश निष्कंटक यो एवी वात लोकोए करवा मांडी ने हवे निश्चयथी चंदराजा श्राजापुरीए श्रवशे एम लोको बोलवा मांड्या ॥ ६ ॥ प्रजा मलीने पाठव्यो, विमलपुरीए प्रेष्य ॥ वेदला चंद पधारजो, वांचीने ए लेख ॥ ७ ॥ ॥ श्रापुना सर्वे नागरिकोए एकता थइ चंदराजानी उपर एक विनंति रूपे आमंत्रण पत्र पुरी पधावा लख्यो ने खेपी ने पत्र यापी विमलपुरीए मोकल्यो. ॥ ७ ॥ ॥ ढाल १४ मी ॥ ॥ अजब सुरंगी हो हंजा मारु लोबडी ॥ ए देशी ॥ परम सयापी हो राणी ताम गुणावली, हेज जराणी दो जोर || सही यसमा हो कहुं वे कोई माहरी मेलवे चित्तनो चोर ॥ प० ॥ १ ॥ नवल नगीनो दो रंगनो जीनो साहिबो, सोरठ रह्यो हो लोनाय ॥ अबको चोमासो हो वासो यावी घरे करे, कोइ समजावो होय जाय ॥१०॥२॥ अर्थ ॥ एवा अवसरमां अत्यंत डाही ने चतुर एवी गुणावली राणी जेना अंतःकरणमा पोताना प्राणनाथ उपरनो स्नेह अत्यंत जोसथी उबली रह्यो तेणीए पोतानुं सर्व सखी मंडल एकतुं कर्युः छ कवा लागी के हे बेहेनो तमारामांथी कोइ एवी महारी वहाली बेहेन के मारा अंतःकरणना चोरने मे - लवी ( पकडी ) . ॥ १ ॥ नव नवा रसनो रसियो ने नुतन स्नेह रूपरत्न एवो मारो नाथ सोरठ देशमां प्रेमना लोथी पढ्यो रह्यो बे. ते या वखतनुं चोमासुं पोताने घेर यावीने करे एवी रीते कोइ जश्ने तेने समजावो तो सारूं ॥ २ ॥ बेनी साची हो प्रेमला लबी माहरी, मानव कीधो हो कंत ॥ पण एक वाते हो हुइ सोकलमी खरी, जोलव्यो नाह महंत ॥ प० ॥३॥ पियुपण पूरे हो रहीने निस्नेही थयो, गम दोहिलो हो पंथ ॥ मनकुं ए मूक्युं हो तिहां ज पहोचे नही, शी इहां शीखं दो संथ ॥ प० ॥ ४ ॥ ॥ प्रेमला बी मारी खरेखर साची बेहेन बे के जेणे मारा पतिने मनुष्य बनाव्यो परंतु एक वाते तो खरेख ते मारी शोकज निवडी बे के जेपीए मारा परमपूज्य स्वामिने जोलवीने कबजामां राख्यो बे ॥ ३ ॥ मारा स्वामिनाथ पण माराथी दूर रेहेवाथी स्नेह रहित थ‍ गया. वली त्यांजवानो रस्तो पण जायो ने महादुःखे जवा योग्य बे. वली कदाच मनने मोकलवानो प्रयास करूं पण तेनी ए शक्ति एवी नथी के त्यांजइ पहोंचे. माटे हवे मारे शुं रस्तो लेवो ते सुऊतुं नथी. ॥ ४ ॥ धम कहावे हो रहे जो नर घणुं सासरे, एम नवि जाणे हो एह ॥ पेहेली जे परणी हो वहाली घणुं घरणी तो होए, अहो केम दाख्यो हो बेद ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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