Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 339
________________ श्६ए चंदराजानो रास. राजचंद तणी सुणी वाणी, राज सुसरानी नयण जराणी ॥ राज राज्या दिके परचाव्यो, राज तोये आजापति वश नाव्यो॥॥ राज मकरध्वज तव नाखे, राज गज विफर्यो ते कोणराखे ॥राज बांध्ये कणबीए खेती, राज कहो चंदजी थाये केती ॥ (पागंतरे) नथी तुमथी हरकत होती ॥७॥ अर्थ ॥ चंदराजानां वचनो सांजलीने तेना सासरानी आंखमां आंसु नराइ गया. तेणे विचार कर्यो के जमाइराजचंदने आपणुं राज्य देवा प्रमुखनी लालचमा नांख्यो तोपण ते आपणे वश श्रयानही अर्थात् अत्रे रह्या नही.॥ ७ ॥ पनी मकरध्वज राजा बोल्याके विफरेला (मदमां आवेला) हाथीने कोण कबजे राखीशके तेम. वलीशुं बांध्ये कणबीए अर्थात् खेमुत उपर शिरजोरी करवाथी सारी खेती अ शके तेमजे. अने कदाच थाय तोपण हे चंदराय तेमां केटलो लाल थाय? (बीजो पाठ) हे चंदराय तमारे माटे तो एम के अमे तो तमने हरकत करीए तेवा नथी. ॥ ॥ राज नूषण पेहेर्याजे मांगी, राज रहे किण विधे श्रवधि थलांघी॥ राज मन मान्यो सोदो, राज नथी तमथी हरकत होदो ॥ ए॥ राज कुमी बुधि उपजावी, राज तमे जाशो हाथ बोमावी ॥ राज पण जो हैमाथी जार्ज, राज तो जाणीए सबल कहावो ॥ १० ॥ अर्थ ॥ वली जे आजूषणो मांगीने पेहरवा आणेला होय ते कामनी मुदते विते केवीरीते राखीश काय? माटे हे चंदराय तमारे माटे तो मन मानमान्यो सोदो. नथी तमने हरकत करवी के नथी अधिकारथी तमे ललचा तेवा. ॥ ए॥ वली तमे जे अहींथी जवा संबंधी विपरित बुद्धि उत्पन्न करीतेथी अमारो हाथ गेडावीने तोजशो परंतु ज्यारे श्रमारा हैया(अंतः करण )मांथी जा त्यारेज अमेतो तमने बलवान मानीए. ॥१०॥ राज जे परदेशी कहाया, राज तेहथी खोटी माया ॥ राज रह्यानो तमे श्हां अवशे, राज खरूं प्राहुणडे घर न वसे ॥१९॥ राज परदेशी शशकने कोशी, राज एता कोश्ना हुथा न होसी ॥ राज जोलवे करी करी वाने, राज तोही चंद नृपति नविमाने ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ वली परदेशीनी साथे जे प्रीति करवी ते तदन खोटी रीतिजे. वली तमेपण अहींआ कवशे रह्यागे, कां खुशीथी रह्या नथी. तेथी अमे तो दवे समज्याके कांई प्राहुणाथी घर वसे नही. ॥११॥ वली हे चंदराय! परदेशी, ससलो अने कोसवालो ए कोश्ना श्रया नथी अने श्रशे पण नही. एवीरीते चंदराजाने अनेक रीते नोलववनी युक्ति करी परंतु चंदराजा कोशीते रेहेवानी हा पामता नथी. ॥१॥ राज चलचित्त निरखी जमाइ, राज करी दीधी ससरे सजाय ॥ राज हरख्यो थानानो स्वामी, राज विमलेशनी शीखजे पामी ॥ १३ ॥ राज श्राव्यो चंदते आप उतारे, राज निज सामंतने उपचारे ॥ राज मुकी जनके स्वबी, राज तेडावी प्रेमला लबी ॥१४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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