Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 343
________________ चंदराजानो रास. २७३ प्रेमलाने वीबमवा वेला, खेचर रह्या रथ खेंची ॥ तेह समय वर्णवता सुरगुरु, केरी पण मत वेंची ॥१३॥ हली मली सहु कोश्ना मननी, साथे सुखडी लीधी ॥ सहु नयणथी उदर जरीने,प्रीति सुधारस पीधी॥१४॥ अर्थ ॥ प्रेमला खजीनो वियोग यती वखते जे करुणारस उचलतो हतो ते जोतां विद्याधरोनां विमानो पण स्थंनाइ रह्यां. विशेषतो शुं कहीए पण ते समयनुं वर्णन करवाने बृहस्पति बेसे तो तेनी बुद्धिपण घुचवणमां पडे तेम हतुं. ॥ १३ ॥ सर्वनी साथे हलीमलीने तेऊना अंतःकरणनी प्रेमरूप सुखडीनो सर्व कोइए अरस परस स्वादलीधो एटलुंज नहीं परंतु अरस परसनी प्रेममय दृष्टिमेलाप रूप अमृत रसनुं पान सर्वेए तृप्तश्रतां सुधीकर्यु. ॥ १४॥ चंद ललाटे तिलक कंकुनु, करी तंऽल प्रतिनावी ॥ मानुए निषधाचल उपर, चंडकला मली श्रावी ॥१५॥ पूरव पुण्यना पिंम सरि, नाली केर फल दीधुं ॥ चंदे प्रेमलाए परियाणु, थाना साहामुं कीg ॥१६॥ अपनी चंदराजाना ललाटमां कंकुनुं तिलक करी उपर चोखा चोड्या ते जाणे निषधाचल पर्वत उपर चंडकलाऐ देखाव आपवा रूप नास भयो. ॥ १५॥ पनी हाथमां श्रीफल आप्यु ते जाणे पूर्वना पुण्यनुं पिंम आप्यु होय तेवो देखावथयो. तेश्रतांज चंदराय अने प्रेमलालचीये श्राजापुरी तरफ प्रयाण कर्यु १६ वागी नेरी तबल नफेरी, थयो मकरध्वज संगे ॥ श्राव्यो विमल पुरीने चटे, चंद घणे मन रंगे ॥ १७ ॥ करे प्रशंसा पुरजन सघला, गीत युवतीये गाव्यो॥पाहुणडो को चंद सरिखो, नविजाण्यो को श्राव्यो॥१०॥ अर्थ ॥ ते वखते प्रयाण समयना डंका-ढोल-निशान-लेरी नफेरी आदि वाजिंत्रो वागवा माड्यां. मकरध्वज राजापण साथे वोलाववा गया. एम चालता चालतां विमला पुरीना चौहटामां चंदराजा हर्षनर आव्या.॥ १७ ॥ ते समये नगरना सर्वे लोको तेनी प्रशंसा करवा लाग्या. सुंदरी गीत गावा लागी. लोको बोलवा लाग्याके चंदराजा समान को मेमान अत्यार सुधी विमलापुरीमां आव्या नथी. ॥ १० ॥ थाना नूपति प्रेमला लली, जोडी ए चिरंजीवो ॥ वेहेलां एह पधारजो पुरमां, करशुं मंगल दीवो ॥१॥ चंद नृपति एम अधिक महोत्सव, श्रीसिकाचल श्राव्या ॥ स्वसुरादिक जन व्रजथी पेहेला, श्रीजिनपति गुण जाव्या ॥२०॥ अर्थ ॥ चंदराजा अने प्रेमला खलीनी जोडी चिरंकाल रेहेजो एम लोकोए श्राशीवाद श्राप्यो. वली विनंति करीए बीए था नगरमां आप वेहला वेहेला पधारजो. तमो पधारतां अमो मंगलदीवो करशु.॥ १ए॥ए प्रमाणे महा महोत्सव प्रवर्त्तते चंदराजा श्री सिघाचस गिरिराज समीपे आव्या अने ससरा प्रमुख सर्वे परिवारथी जुदा पडतां पेहेलां तेमणे श्री जिनराजना गुणोनुं स्तवन कयुः ॥ २० ॥ कहे मोहन इहां चोथे उसासे, सुललित सोलमी ढाले ॥ मानव जव सुकीयारथ कीधो, श्री श्री चंद लुपाक्षे ॥१॥ अर्थ ॥ मोहन विजयजी महाराजे आ चोथा उवासमां सुललित सोलमी ढाल कही जेमां कयुके श्री चंदराजाए पोतानो मनुष्य लव सुकृतार्थ कर्यो. ॥ २१॥ ३५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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