Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 350
________________ २० चतुर्थ उदास. अर्थ ॥ चंदराजाए आनंद सहित सर्व नागरिक जनोनुं सन्मान कर्यु. पनी देम कुशलनां प्रश्नो पुरता अत्यंत आनंदोत्सव प्रगट थयो ॥ ५॥ घरे घर आनंदनी वधाळ श्रश्. प्रेमना अंकुरा अरस परस प्रगट श्रया, अने चंद राजा श्राववाथी आनापुरी पण फरीने तेजोमय श्रश्. ॥ ६॥ नरनारी नृप निरखवा, टोले मल्या अनंत ॥ नृप पुर पेसारो करे, जट्ट बिरूद बोलंत ॥ ७॥ अर्थ ॥ नरनारीना अगणित समुदाय चंद रायने निरखवा गमे गम एकत्र थया अने चंदराजाए जाट चारणो बिरूदावली बोलते नगरने विषे प्रवेश कर्योः ॥ ७ ॥ ॥ ढाल १ए मी॥ ॥ मुंबखमानी देशीमां ॥ पूरमां पेसारो कर्यो रे, नूपे हर्ष अतीव ॥ सुरंगव धामणां ॥ जेम असंख्य प्रदेशथी रे, घट मांही जेम जीव ॥ सु ॥ १॥ मुख आगल रथ सातसें रे, चाले चौटा विचाल ॥ सु०॥ जिन मत नयसाते तणारे, सात सयां चक्रवाल ॥ सु० ॥ २॥ अर्थ ॥ चंद राजाए हर्षजर आनानगरीमा जेम असंख्य आत्म प्रदेशवालो जीव शरीरमा प्रदेशो सहित प्रवेश करे तेवी रीते प्रवेश करतो हवो ॥ १॥ वली सामैयामां चौटा मध्येश्री सातसो रो श्रागल चालता हता ते जाणे स्याद्वाद मतना सात नयोना प्रकारांतरे श्रयेला सातसो जेदना जेवा शोजता हता.॥॥ हलक्या मदऊर गजतणा रे,करता अलिऊंकार ॥ सु॥ सुणीये सुयश मृदंगना रे, प्रगव्या मधुर धोंकार ॥ सु० ॥३॥ चपल तुरंगम कुदतारे, कीरति नदीना तरंग ॥ ॥ पंच रंग नेजा फरहरे रे, जेवा विजयना अंग ॥ सु॥४॥ अर्थ ॥ जेना कुंजस्थलमांथी मदफरी रह्यो चे अने जेनी फरता जमरा गुंजारव करी रह्या ने एवी हाथीनी शोला विशेष के. वली सुंदर यशनो अवाज करता एवा मधुर स्वरवाला मृदंगोनो नाद पण संजलाय ॥३॥ अत्यंत वेगवाला अश्वो कुदी रह्या मे ते जाणे कीर्ति रूपी नदीना मोजा नबलता होय तेवा नासे . वली विजयना अंगत एवा पंचरंगी वावटा गम गम फरकी रह्या बे. ॥४॥ दीपे पायक दल जनुं रे, नौतम ज्योतिष चक्र ॥ सु॥ चंद विराजे तेहमां रे, लंबन रहित अवक ॥ सु० ॥ ५॥ त्रंबाबु गुजे घणा रे, जल धर ध्वनि अनुकार ॥ सु० ॥ मंगल तूर जिल्बी रवेरे, वरसे वसु जलधार ॥ सु० ॥६॥ अर्थ॥ सुशोनित एवं पायदल जाणे नवीन ज्योतिष चक्र-मंडल होय तेवू लासमान थइ रघु ने तेमां खंडन वगरनो तथा सरल एवो चमराय चंजमानी जेवो बिराजे ॥ ५॥ मेघना गर्जारवनी जेम नोबतो गडगडी रही , तेमज मंगलमय वाजिंत्रोनो ध्वनि तमराऊना ध्वनि जेवो थइ रह्यो . ते साथे खमीनो वरसाद वरसे ॥६॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396