Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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श्य
चंदराजानो रास. राजाए सनामां पोतानो सर्व वृत्तांत प्रेम सहित कह्यो. ते सांजलीने सन्य जनो राजाने आशीरवाद देवा लाग्या अने कहेवा लाग्याके आपने धन्य वाद घटे बे. आपनुं पुण्य जग प्रसिद्ध . ॥ १३ ॥
प्री०॥ लोक सकल सुखीया थया हो ॥ सा० ॥ पेखी पुहवी पाल ॥ से० ॥ प्री० ॥ मोहने चोथा उल्हासनी हो ॥ सा॥ नाखी वीशमी ढाल ॥ से० ॥ १७॥
अर्थ ॥ पृथ्वी पति चंदरायने तेजस्वी स्वरूपे निहालीने नगरना सर्वे लोको अत्यंत सुखी थया. एवी रीते मोहन विजयजीए चोथा नसासनी वीशमी ढाल कही. ॥१७॥
॥दोहा॥ सात सयां अंते उरी,पति रंजनने काज ॥दाखे नव नव चातुरी, हाव नाव करी लाज ॥१॥ गीत कवित्त प्रहेलिका, गाहा
दोधक बंद ॥ निसुणी वनिता वचनथी, चंद लहे सानंद ॥२॥ अर्थ ॥ अंतःपुरनी सातसो राणी पोताना स्वामिनाथने रंजन करवा माटे नवा नवा प्रकारना शृंगार रसनी चतुराइ जरेखा हाव लाव मर्यादा पूर्वक बतावे ॥१॥ जुदी जुदी राणीउँना मुखथी संगीत, कवित्त अक्षर तथा मात्रा मेलना जुदा जुदा गाथा, दोधक विगेरे बंदो सांजलीने चंदराजा आनंद प्राप्त करता हता.॥५॥
नित नित विलसे विविध सुख, सांसारिक मन रंग ॥ जोग उदय ज्यां लगी हुवे, त्यां लगी राज्य अजंग ॥३॥ चंद जणी नवि विसर्यो, नट
वरनो उपगार ॥ संपत्तिमा गुण सांजरे, अहो उत्तम आचार ॥४॥ अर्थ ॥ चंदराजा विविध प्रकारना संसारी सुख निरंतर हर्ष सहित जोगवे जे. ज्यां सुधी जोगनो उदय होय त्यां सुधी राज्य अनंगपणे पाले ॥३॥ नटराय शिवकुमर चंद राजाना मनमांथी विसर्यों न होतो तेना उपगार तेने याद आवता हता. संपत्ति प्राप्त थतां करेला गुण सांजरे तेज उत्तमनी रीति जे. ॥॥
निर्गुणी जन गुण नवि गणे, गुणवंत गुणना दास ॥ गुणी तणे कारण गगन, दिनकर करे प्रकाश ॥५॥ गाम सीम आपी घणां, को प्रसन्न
नटेश ॥ चंदे निज जशथी कर्या, उज्वल देश विदेश ॥६॥ अर्थ ॥ निर्गुणी मनुष्यो करेला उपकारने संचारताज नथी. अने गुणवंत होय जे तेनो गुणना दास होय ने एवा गुणीने खातरज सूर्य आकाशमा प्रकाश करे ॥५॥ नटराय शिव कुंवरने गाम गरास अनेक प्रकारथी आपीने बहुज प्रसन्न कर्यो. एवी रीते अनेक प्रकारे यशः कीर्ति संपादन करी देश विदेशमा उज्वलता मेलवी.॥६॥
राजा राज्य प्रजा सुखी, पुःख नही लवलेश ॥
नर सुर तिरि सहुको कहे, जय जय चंद नरेश ॥७॥ अर्थ ॥ उत्तम न्यायथी राज्य पालतां राजा अने प्रजा बंने सुखी श्रया. लेश मात्र सुख रडुं नही. देव, मनुष्य अने तिर्यंच सुधां सर्वे चंद महारायनो जय जय बोलता हता.॥ ७॥
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