Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 316
________________ २४६ चतुर्थ उल्लास. __ अर्थ ॥ नेरी अने चुंगलना अवाजश्री जाणे दिशि कुमारिका बेहेरी श्रश् गइ अने पर्वतनी गुफा सर्वे, वाजिंत्रोना नादी पवित्र श्रइ गइ एम लाग्यु. ॥ १५ ॥ बनेना शिर उपर बत्र शोजतुं हतुं अने उज्ज्वल चांमरो बने बाजुए बनेने वींकातां हतां. आवी रीतना उंचव सहित बने जणाए हर्षथी गल गला अतां नगरमा प्रवेश कर्यो ॥ १६॥ मकरध्वज नृपचंद, निजगृह श्राव्या हो मनडे गह गही जी॥ श्रामी ढाल रसाल, चोथे उहासे हो मोहन विजये कही जी ॥१७॥ अर्थ ॥ मकरध्वजराजा अने चंदराजा मनमां हर्षश्री गह गहता पोताना मेहेले आव्या. एवी रीते चोथा उवासमा रसाल आठमी ढाल मोहनविजयजीए कही. ॥ १७॥ ॥ दोहा ॥ अर्थी सवि संतोषिया, देश दान अनंत ॥ अर्थिणीए नवि उल ख्या, निज घर श्राव्या कंत ॥१॥ संतोष्यो शिवकुमरने, देधण कण कोम ॥ खिणमांहि एहवो कयों, नृप को नकरे होड ॥२॥ अर्थ ॥ दानना लेनाराऊने अनेक रीतना दान आपी एवातो सर्वेने तृप्त कर्याके तेमनी स्त्री ज्यारे पोताना नाथ घेर श्राव्या त्यारे उलखी शकी नही. ॥१॥ वली शिवकुंवर नटने तो क्रोडोगमे धन धान्य एक कणवारमा आपी एवो बनाव्योके को राजापण तेनी साये रीधिमां होड करीशके नही. ॥२॥ चंदे निज सामंतने, अधिक वधारा दीध ॥ सेवकता मांदे थका, मित्र समाणा कीध ॥३॥ जेहने जे देवू घटे, दीधुं ते हने तेम ॥ दाता नर देतां थकां, पालु जोवे केम ॥४॥ अर्थ ॥ पनी चंदराजाए पोताना सामंतोने विशेष रीते आप्यु ते एटले सुधीके सेवकनी स्थितिमांथी फेरवीने मित्र समान बनावी दीधाः ॥ ३ ॥ जेठने जे जे प्रमाणे आपq उचित हतुं तेने ते ते प्रमाणे दान आप्यु. शुं दातार पुरुष दान देवाने तैयार या पळी आपतां पातुं वाली जुऐ? ॥४॥ पहोत्यां सहु निज निज गृहे, करता नवल टकोल ॥ चंद सुजश प्रगट्यो जगत, शशि ज्युं कलाथी सोल॥५॥कंचुकी पहेरे प्रेमला, पण नुजयुगन समाय॥हियमामांहि वध्यो हरख, चिहुं दिशि पसर्यो जाय॥६॥ अर्थ ॥ अनेक प्रकारना नवा नवा श्रानंदना कलोलथी उबलता सर्वे पोतपोताने घेरगया. चंदराजानो यश जगत्मां, चं सोल कलाथी जेम, तेम प्रगट अयो ॥ ५॥ अहींआ प्रेमला खबीए कांचली पेटेरवामांडी परत वर्षथी ते एटली फली ग के बने नजानमा कांचली श्रावीशकी नही. वलीपोताना अंतःकरणमांनो हर्ष एटलो तो वधीगयो के ते बहार निकली चारे दिशामा फेलाइ गयो ॥६॥ जल गत शफरी जेम करी, आंसुथी जगतात ॥ कहे सुताने हृदयमां, रही हुतीजे वात ॥७॥ अर्थ ॥ जलमां रेहेनारी मांगली जिंजाइ होय तेवी मकरध्वज राजानी आंखो आंसुथी जिंजातां, पोताना हृदयमां जे वात हती ते प्रेमला लन्चीने कहेवाने पोते तैयार थयो ॥ ७॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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