Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 317
________________ चंदराजानो रास. २४१ ॥ ढाल ए मी॥ ॥ गोकुल गामने गोंदरे ॥ ए देशी॥ प्रेमला लबी नणी कहे रे, एम मकरध्वज वसुधार ॥ गुणवंती रे ॥ महारा अवगुण तुं सुतारे, को नाणीश हृदय मोकार ॥ गुणाप्रे॥१॥ सोलवरस तुज उपरे रे, में तो न धर्यो मोह लिगार ॥ गु०॥ निपट श्र जाएयु में कयु रे, ए तो न लह्यो में जंमो विचार ॥ गु० ॥ प्रे॥२॥ अर्थ ॥ मकरध्वजराजाए कह्यु के हे बेटा! प्रेमला खजी तुं गुणवंतीगे तेथी मारा जे जे दोषो तारी परत्वे थयाने ते तारा हृदयमां कदापि संचारती नही. ॥१॥ सोलवर्ष सुधी तारी उपर में जरापण स्नेह धर्यो नही तेथी भने हवे ठंडो विचार करतां एम लागे के ते खरेखरी में जूल करी. ॥॥ . कही तुजने विषकन्यका रे, नित कुष्टी वचने एम ॥ गु०॥ न करत कडं जो मंत्रीत' रे, तो बुटत पातिक केम ॥ गु० ॥प्रे ॥३॥ तें मुजने घणुं ए कयु रे, जी चंद नृपति जरतार ॥ गु० ॥ तो पण हुं मानतो नहीं रे, अहो उर्जन वचन विकार ॥ गु० ॥प्रेण ॥४॥ अर्थ ॥ में तने ए कोढीआना कहेवाथी निरंतर विषकन्या कही. परंतु जे मंत्रीए कह्यं ते में न मान्युं होत तो ते मारां दुष्ट कृत्यनां पापथी हुँ केवीरीते बुटत.॥३॥तें तो मने घणीवार कयुं हतुं के चंदराजाने ते मारो स्वामिले; परंतु उर्जनोनां वचनोनो विकार मारा मनमां एटलो तो श्रयो हतो के ते तारीवात हुं मानतोज नहोतो. ॥४॥ तुजने परणी जे गयो रे, हवे उलख्यो रूडे एह ॥ गु० ॥ ए नर किहां किहां कोढीयो रे, पड्यो अंतर जलधर वेद ॥ गु० ॥प्रे० ॥५॥रे व तुज नाग्यनो रे, किणे पाम्यो न जाये पार ॥ गु० ॥ वीडमीया जे मेलो थयो रे, करीगणे सफल अवतार ॥ गु० ॥प्रे॥६॥ अर्थ ॥ तारी साथे जे लग्न करीने जतो रहेलो तेने हवे हूं रूडी रीते उलखी शक्योवं. क्यां ए पुरुष अने क्यां श्रा कोढी. बनेमां फरकतो वरसाद अने काकल जेटलो. ॥५॥ हे पुत्री! तारां नाग्यनो कोई पार पामीशके तेम नथी. लांबा वखतथी वियोगी श्रयेलानो जे फरी मेलाप थयो तेश्री तारो अवतार सफल भयो बे. ॥६॥ तुं हवे कोश तणुं कडं रे, मननाणीश कहुं९ एह ॥ गु० ॥ हुँ थयो काचो जे काननो रे, कयु निपट जाएयु तेह ॥ गु० ॥ ॥ ७॥ कहे पुत्री एम सांजली रे, श्हां तातजी नहीं तुम दोष ॥ गु०॥ कीधां कर्मन बुटीए रे, कुण थाणे कुणथी रोष ॥ गु० ॥प्रेण ॥ ॥ अर्थ ॥ हुँ तने कई के हवे तुं कोश्नां वचनो मनमां लावीश नही. हूं ज्यारे काचा काननो थयो त्यारेज में खरे खरी नूतकरी. ॥ ७॥ ते सांजली प्रेमलालबीए कहूं के हे पिताजी एमां तमारो कांश Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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