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चंदराजानो रास.
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रंगवाला ते पक्षीने साथ लईने हर्ष सहित नाटकीयार्ज दरबारमां श्राव्या. नगराधिराजनुं, दर्शन थतांज शिवकुमरे एवो आशीर्वाद आयो के हे राजन् आपनो प्रताप जगतमां सूर्यनी जेम तपजो. ॥ ८ ॥ नृप तुज सोरठ देश, विमल पुरी सुविशेष, ॥ ० ॥ रहेती होंश जोवा तणी जी ॥ पूरव पुण्य अनुसार, दीगे तुज देदार, ॥ ० ॥ आज फली श्राशा घणीजी ॥ ए ॥ श्राजा नगरी एक दीवी अमे विवेक ॥० ॥ दीठी विमला पुरीजी ॥ एम कहीवा ढोल,
काठ कसी रंगरोल, ॥ श्रा० ॥ मांगी नटे चातुरी जी ॥ १० ॥
अर्थ || हे राजन् ! आपनो सोरठ देश जोवानी ने तेमां पण विमलपुरीतो विशेषपणे जोवानी होंश मनमा घणी हती, वली पूर्व पुण्यना पसायथी आप नामदारना आजे दर्शन थयां तेथी जे मा कशा फलीभूत थई ॥ ए ॥ श्रमे तो उत्तम विवेकवाली एक आजानगरी दीवी के बीजी विमलापुरी दीवी. एवां मनोहर वचनो बोली ढोल बगाड्यो अने रंगजर कानडोवाली अर्थात् सामग्री तैयार करी नटे नाटकनुं काम शरू कर्यु. ॥ १० ॥
कीधी भूमि पवित्र, पुंज कुसुम सुविचित्र, ॥ श्र० ॥ ते उपर पिंजर
जी ॥ सुघट घाट विख्यात, जाणीए सुरगिरि जात ॥ ० ॥ ए वो वंश जो कर्यो जी ॥ ११ ॥ दोरातास समंत, बांध्या खेंची श्र नंत ॥ ० ॥ जाणीए किरण दिलंदनां जी ॥ कीलक राते रंग, धरणी ली अभंग, ॥ ० ॥ मानीए कोश अरविंदना जी ॥ १२ ॥
॥ प्रथमतो भूमि पवित्र करी तेना उपर चित्र विचित्र सुंदर पुष्पनो ढगलो करी ते उपर पांजबि.पी सुंदर, सारा घाटवालो, जाणे मेरूपर्वतज लावीने खडो कर्यो होय एवो वांस, नाटक करवानी मध्य भूमिमां लावीने जो कर्यो. ॥। ११ ॥ ते वांसनी साथे अनेक मोटा दोरडा मजबुतरीते खेने बांध्या, ते जाणे सूर्यनां किरणोज होयनी एवां लागतां हतां. ते दोरडा, राता रंगनी भूमि पर निकली के एवी रीते खीलाई ठगेकी ते खीलाई साथे बांध्यां दतां. ते जाणे कमलना मांडा होय एवा दिसता हता ॥ १२ ॥
शिवमाला तेलीवार, पेहेरी सवी शणगार, ॥ श्रा० ॥ वंस तले उनी रही जी ॥ के शमता के खंति, के निरममता जंति ॥ ० ॥ एहथी अन्य उपम नहींजी ॥ १३ ॥ नट कन्या नरवेश, सुरीयुं एहनो लेश, ॥ ० ॥ देखी चमकित हुइ सजा जी ॥ राजा मन संदेह, कुण बे धन्या एड्, ॥ श्र० प्रगटी कहांथी रवि प्रजा जी ॥ १४ ॥
॥ तत्काल शिवमाला सर्व शृंगार धारण करी वांस नीचे आवीने उभी रही. जाणे साक्षात् श मता, क्षमा के निर्ममता खडी होय तेवी दिसती हती. हवे एथी वधारेते शी उपमा पीए अर्थात् बीजी एकपण तेथी वधारे उपमा आापी शकाय तेम नथी ॥ १३ ॥ शिवबालाए नवो पुरुषनो वेश
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