Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 275
________________ चंदराजानो रास. २०५ अर्थ ॥ लीलाधरे कडं हे पिताजी मने आशा आपो. ढुं परदेश जवा मांगुं बु. तेना पिताए कह्यु के नाइ हजु तुं बालक गे तेथी तने केम जवा देवाय? ॥ए॥ तने युवान स्त्री परणावी. पुष्कल लक्ष्मी बे. वली आपणे कोनुं देवू नथी, माटे हे नाइ ! जश्शमा. एटले निखारीए जे मेणुं दीधुं हतुं ते लीलाधरे तेना पिताने कह्यु.॥१०॥ रे सुत रांक तणी वातडीये,फोकट केम हठ ताणे ॥ गांठतणी उंघमली वेची,उजागरो कोण थाणे॥गण॥१९॥माता तात तणो समजाव्यो,समजे नहीं रढीयालो ॥ मंत्री प्रमुख गया हारीने, नाक चढयो मतवालो ॥गण॥१॥ अर्थ ॥ हे बेटा ! एवा निखारीनां वचनथी ते कोइ हठ करतुं हशे? एवो हठ कर नही. पोतानी उंघवेची विना कारणे कोण उजागरो करे? ॥ ११ ॥ मात पिताए घणी रीते समजाव्यो परंतु ए हठ लश्ने बेठेलो समजतोज नश्री. मंत्री विगेरे सहु थाकीने गया. ते एक मतीलो चढी गयो.॥ १२॥ जेमतेम करी जोजन जमामयो, थव रजनी रसन्नेले ॥ ललित गते लीला वती श्रावी,पण पति मीट न मेले॥ग॥१३॥ कामणगारी नारी बोली, पियु डा नयण उघाडो ॥ कीमी उपर केही कटकी,तृण उपरस्यो कुहाडो॥ ग॥१४॥ अर्थ ॥ जेम तेम करीने लीलाधरने जमाडयो, एटलामा रात्री अश्. बाद शय्यामां पोढवाने समये मनहर गतिवाली लीलावती आवी परंतु तेना सामु तेणे नजर पण करी नही ॥ १३ ॥ कामणगारी लीला वती बोली के हे नाथ ! जरा आंख उंची करी मारी सामुं तो जुर्ज. कीडी उपर आवj कटकशुं अने घास उपर कुहाडो शामाटे ? ॥१४॥ एम सहुने मुहवीने जाशो, हुं केम देशजावावीमीया फीरी मिलण दोहिलो, पोस किहां किहां पावा॥गण॥१५॥ मंदिर मुकीते केम जाये, जे होय प्रजुना पुरा ॥तुम जेवा में कोनविदीग, श्रापमति घर शूरा ॥ग॥१६॥ अर्थ ॥ ए प्रमाणे सहुने तो मुःख लगाडीने जाशो परंतु ढुं केम जावा दश्श ? जुदा पम्या पळी फरी मल, मुस्केल थाय . क्यां पोस अने क्यां अग्नि तेना जेवी दशा थाय ॥ १५ ॥ जेना उपर परमेश्वरनी पुरी कृपा होय ते पोताना घर बार गेमी शुं काम बहार लटकवा जाय? तमारा जेवा श्रापमतीला अने घरवाला उपर जोर बतावनारा आज सुधी को दीगा नथी. ॥१६॥ विलमावे एम मीठे वचने, रमण नणी ते रमणी ॥ त्रीजा उदासनी ढाल पचीसमी, मोहन विजये पत्नणी ॥ ग ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ ए प्रमाणे अनेक मीगं वचनोथी लीलावती पोताना प्राणनाथने समजावे . त्रीजा उबासनी पचीशमी ढाल मोहन विजयजीए कही. ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ लीलाधर ललना वचन, बुबको नहीं लगार ॥ नारी हारीने रही, कंतन मेले तार ॥१॥ थयो प्रात तव तात पण, अति समजाव्यो जात ॥ वात न माने कोश्नी, नेयो नहीं तिल मात ॥२॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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