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* विषय-सूची '*
जनगा
विषय
पृष्ठ । विषय प्रथमाअधिकार
१-७३ जीव का देह प्रमाणपना टीकाकार का मंगलाचरण
सात समुद्घातों का लक्षण ग्रन्थ की भूमिका
१ स्थावर व त्रस जीव विषय-विभाजन
| जीव समास ग्रन्थकार का मंगलाचरण
| प्राण 'वंदे' शब्द का निश्चय व व्यवहार से अर्थ ४ | | चौदह मार्गणा व चौदह गुणस्थान । सौ इन्द्रों के नाम
५ प्रत्येक गुणस्थान का लक्षण असंयत सम्यग्दृष्टि एकदेश जिन ५
वैनयिक व संशयमिथ्यादृष्टियों का सम्यगअहंत के प्रसाद से मोक्षमार्ग की सिद्धि ६ मिथ्यादृष्टि से अन्तर इष्ट, अधिकृत व अभिमत देवता
अविरत सम्यग्दृष्टि, निश्चय व्यवहार को नय विवक्षा से ग्रन्थ का प्रयोजन
साध्य-साधक माननेवाला तथा आत्मनिंदा जीव के उपयोग आदि नौ अधिकार ८ सहितइंद्रियसुखानुभव करने वाला ३३,८१ जीव का कर्मोदयवश छह दिशा में गमन ६ | देशविरति स्वाभाविक सुख अनुभव प्राणोंके कथन द्वारा जीव का लक्षण १०,३०.७५ करने वाला
३३ नौ दृष्टांत द्वारा जीव की सिद्धि ११ | केवलज्ञान के अनन्तर ही मोक्ष क्यों नहीं ३६ नयों का लक्षण
१२ | शुद्ध-अशुद्ध पारिणामिक भाव ३८ मुख्यता से वर्णन में अन्य विषय गौण १३ | सिद्धोंका स्वरूप, ऊर्धगमन स्वभाव ४०,२११ दर्शनोपयोग तथा उसके भेद १३ | सिद्धों के आठ गणों का विशेष
न ४१ जीव का स्वभाव केवलदर्शन, किन्तु
सयोगि गुणस्थान के अन्त समय में कर्माधीन से चक्षुदर्शनी
शरीर से ऊनता
४३, २१२ चक्षुदर्शनसंव्यवहारप्रत्यक्ष,निश्चयसे परोक्ष१३
सिद्धों के आत्म-प्रदेश समस्त लोक में ज्ञानोपयोग व उसके भेदों का लक्षण १४
क्यों नहीं फैलते मिथ्यात्व उदय से ज्ञान भी अज्ञान १४
संकोच-विस्तार करना जीव-स्वभाव नहीं ४३ संव्यवहार का लक्षण
मुक्त होने के स्थान पर सिद्ध नहीं रहते ४४ श्रुतज्ञान कथंचित् प्रत्यक्ष उपयोग का लक्षण नय-विभाग से
सिद्धों में तीन प्रकार से उत्पाद-व्यय ४५ 'सामान्य' का लक्षण
बहिरात्मा का लक्षण
४५, ८१ उपयोग का लक्षण
अन्तर-आत्मा का लक्षण जीव अमूर्त व मूर्त
चित्त, दोष व आत्मा का लक्षण जीव का कर्त्तापन २०, ७६, ८१ परमात्मा का लक्षण अशुद्ध निश्चय नय का लक्षण २१ | परमात्मा में बहिरात्मा व अन्तरात्मा शक्ति जीव का भोक्तापन
२२ रूप से है, व्यक्ति रूप से नहीं ४७
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