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जैन विद्या के आयाम खण्ड-७ बिना भी ऊतंग हैं । बिना फैले भी सर्वव्यापक हैं, निम्नगामी होते हुये निष्क्रिय और व्यथापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे। हनुमान के आते ही बिना भी गम्भीर हैं, लघु होते हुये बिना भी सूक्ष्म है और अज्ञात होकर राम के मन में सीता की स्मृति रोमांचित होने लगती है और रावण के भी प्रकट हैं । कवि आगे की गाथाओं में वामनावतार का प्रसंग देते हुये प्रति क्रोधानल जागृत होता है । सेना का संगठन करके राम लंकाभिमुख विष्णु की महिमा का वर्णन करते हैं । उनका कहना है कि विष्णु सम्पूर्ण होते हैं और पर्वत-कंदराओं को पार करते हुये दक्षिण सागर तट पर ब्रह्मांड में व्याप्त हैं तथा तीनों लोकों का अविर्भाव एवं तिरोभाव करने पहुंचते हैं । सेनाओं के साथ जाते हुये राम की मनःस्थिति और प्राकृतिक में सक्षम हैं । विष्णु ब्रह्म के प्रति विधि एवं जगत के कारण हैं । कवि दृश्यों का वर्णन सेतुबन्ध को एक अलग से विशिष्टता प्रदान करता है। की कल्पनाशीलता. का प्रमाण देखने को मिलता है, जहाँ उन्होंने समुद्र की विराटता एवं उसको पार करने की चिन्ताभावना राम के मुख जामवन्त के मुख से भगवान् श्रीराम का विष्णुत्व वर्णन करवाया है। से प्रकट होती है। सेनाओं को संबोधित करते हुये सुग्रीव का ओजस्वी कवि की दृष्टि में प्रत्यक्ष एवं अनुभव जन्य ज्ञान की अपेक्षा अप्रत्यक्ष तथा भाषण वानरी सेनाओं में साहस का संचार कर देता है । जामवन्त भी अध्ययन-जन्य ज्ञान ही अधिक महत्त्व रखता है । यद्यपि वे वेदान्त वानरी सेनाओं को प्रोत्साहित करते हैं और उसी समय विभीषणअथवा उपनिषदों से प्रभावित नहीं दीख पड़ते फिर भी उन्होंने अपने आकाश मार्ग से उपस्थित होता है । हनुमान विभीषण को लेकर राम के काव्य में माया का प्रयोग किया है, जो सामान्य अर्थ में प्रवंचना का ही समक्ष उपस्थित होते हैं और परिचय कराते हैं। विभीषण राम के चरणों प्रतिरूप है (सेतुबन्ध ११/१३७, १३/९९)।
में झुकते हैं और राम उन्हें आशीष देकर अपनत्व प्रकट करते हैं । सेतुबन्ध के माध्यम से प्रकट होता है कि प्रवरसेन सामन्तीय सेनाओं के साथ राम सर्वप्रथम समुद्र से प्रार्थना करते हैं लेकिन समुद्र जीवन-शैली के पुरोधा हैं, क्योंकि काव्य में सर्वत्र सामन्तीय वातावरण के अनसुना करने पर राम क्रोधित होते हैं एवं धनुष पर चाप चढ़ाते हैं। का चित्र प्रस्तुत हो सका है। विलासप्रियता, रंग-रूप की साज-सज्जा, उनका यह दृश्य देखकर सागर जीव-जन्तुओं सहित व्याकुल होकर सेतु राजनीति, कूटनीति का प्रयोग, सन्धि-विग्रहादि का वर्णन कवि के निर्माण की आज्ञा देता है और राम के समक्ष आत्म समर्पण कर देता राजसिक-वृत्ति का परिचायक है, क्योंकि सेतुबन्ध में सर्वत्र राम एवं है। वानरी सेना बड़े-बड़े पर्वतों की चट्टानों को समुद्र में डालने लगते उनके सहयोगियों के द्वारा राजसी प्रवृत्तियों का आकलन अधिक हुआ हैं लेकिन सेतु नहीं बन पाता है । तब सुग्रीव नल से परामर्श करके सेतु है और साधारण लौकिक जीवन का चित्रण कम । फिर भी, तत्कालीन निर्माण का कार्य आरम्भ करते हैं और सेना सहित राम समुद्र पार करके सामाजिक नीति, आचार एवं परम्परागत निष्ठा के बहुविध चित्र सेतुबन्ध सुमेरु पर्वत पर डेरा डालते हैं । लंका पहुँचने पर राम की चिन्ता और में देखे जा सकते हैं । अगर सच पूछा जाय तो प्राकृत भाषा साहित्य अधिक बढ़ जाती है और सीता वियोग की स्मृति से राम आकुलके क्षेत्र में प्रवरसेन बहुमुखी प्रतिभा के परिचायक कहे जा सकते हैं। व्याकुल हो जाते हैं। उधर सीता के समक्ष रावण नाना प्रकार के प्रलोभन उनके सेतुबन्ध महाकाव्य उपमान चित्रण में सर्वोपरि है । रामायण के देता है एवं मायावी रूप का प्रदर्शन करता है लेकिन सीता इन प्रलोभन छोटे से कथांश के आधार पर कल्पना का एक ऐसा वितान खड़ा कर से अलग हटकर अपने आप में खोई रहती है और यदा-कदा बेहोश हो देना उनकी विराट कल्पना की संयोजन शैली-शिल्प की विशिष्टता का जाती है। त्रिजटा उन्हें नाना प्रकार से आश्वासन देती है लेकिन सीता का संकेतक है। उनकी इस महार्ध रचना के लिये महाराष्ट्री प्राकृत सदा विलाप कम नहीं होता। प्रात:काल होने पर दोनों सेनाएँ आमने-सामने ऋणी रहेगी।
होती हैं और युद्ध प्रारम्भ हो जाता है । रावण को सम्मुख न पाकर राम प्रवरसेन की , इसके सिवा और कोई रचना उपलब्ध नहीं खिन्न होते हैं और राक्षसों पर वाणों का प्रहार करने लगते हैं । मेघनाथ है। लेकिन विश्वास नहीं होता कि सेतुबन्ध जैसे महिमामंडित महाकाव्य राम-लक्ष्मण को नागफाश में बाँधने में सफल हो जाता है। उस समय की रचना करने वाला प्रवरसेन अन्य कोई रचना के प्रति आकर्षित क्यों वानरी सेनाओं में हाहाकर मच जाती है, लेकिन तुरंत बाद ही गरूड़ के नहीं हुआ। सुभाषित भांडागार में कतिपय मुक्तक-श्लोक प्राकृत भाषा आने पर नागफाश का अन्त हो जाता है। उसी समय अट्टाहास करता में प्रवरसेन के नाम से प्रसिद्ध हैं फिर भी, अन्य कोई रचना के सम्बन्ध हुआ युद्ध क्षेत्र में रावण का प्रवेश होता है और राम के साथ घमासान में इतिहास मौन है।
युद्ध होने लगता है। राम के बाण से आहत रावण पुन: लंका की ओर सेतुबन्ध की कथावस्तु बाल्मिकी रामायण के युद्धकाण्ड के लौटता है एवं कुंभकर्ण को जगाता है । कुंभकर्ण के आने से पुन: वानरी आधार पर प्रतिष्ठित होती है । इस ग्रन्थ में पन्द्रह आश्वासों का विधान सेना में हलचल मच जाती है लेकिन कुंभकर्ण मारा जाता है । पुनः है एवं १२९० गाथाओं का समायोजन कथा का प्रारम्भ शरद ऋतु के विभीषण के मंत्रणानुसार इन्द्रजीत का भी वध होता है । यह सब देखकर आगमन से हुआ है, जब राम बालि का वध करके सुग्रीव का राज्याभिषेक रावण कुद्ध होकर राम के साथ पुनः युद्ध करने लगता है। राम के वाणों कर देते हैं, उसी समय हनुमान का प्रवेश होता है, जो सीतान्वेषण के से रावण के सिर एवं हाथ कट जाते हैं और पुनः जुड़ जाते हैं । अन्त लिये गये हुये थे । हनुमान के आने के पूर्व राम सीता के वियोग में में रावण का वध होता है । विभीषण प्रलाप करते हैं और उसका अन्तिम
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