Book Title: Bhupendranath Jain Abhinandan Granth
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

Previous | Next

Page 176
________________ अनेकान्तवाद और उसकी व्यावहारिकता १३७ एक ही है और वह है अनेकान्तवाद । अनेकान्तवाद का कहना है कि महावीर - जो व्यक्ति यह नहीं जानता कि ये जीव? अजीव यह तुम्हारे लिए माँ है, क्योंकि तुम इसके पुत्र हो पर अन्य लोगों के हैं और ये त्रस हैं, ये स्थावर हैं, उसका प्रत्याख्यान दुष्पत्याख्यान है, लिए यह माँ नहीं है । वृद्ध कहता है कि यह पुत्री भी है, आपकी अपनी जो यह जानता है कि ये जीव हैं और ये अजीव हैं, ये त्रस हैं, ये स्थावर अपेक्षा से, सब लोगों की अपेक्षा से नहीं । इस प्रकार अपनी-अपनी हैं उसका प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है, क्योंकि उसका कथन सत्य है ।२७ अपेक्षा से ताई, मामी, दीदी आदि सब है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जयन्ती - भगवन्! सोना अच्छा है या जागना ? प्रत्येक वस्तु के दो पहलू हैं- है भी, नहीं भी । दर्शन की भाषा में यही महावीर - जयन्ती ! कुछ जीवों के लिए सोना अच्छा है और अनेकान्तवाद है। कुछ जीवों के लिए जागना अच्छा है। जयन्ती - वह किस प्रकार ? 'ही' वाद और 'भी' वाद महावीर - जो अधर्मी है, अधर्मान्ग है, अधर्मिष्ठ है, अधर्माख्यायी संसार में दो वाद पाये जाते हैं - 'ही' वाद और 'भी' वाद। है, अधर्मप्रलोकी है, अधर्मप्ररंजन है, अधर्म समाचार है, अधार्मिक वृत्ति 'ही' वाद कहता है - 'मैं ही सच्चा हूँ' अर्थात् मेरा कथन सत्य है और युक्त है, उनके लिए सोना अच्छा है क्योंकि वे सोते रहेंगे तो अनेक जीवों मेरे सिवा सभी सम्प्रदायों का कथन असत्य है । ठीक इसके विपरीत को पीड़ा नहीं होगी। वे अपने को तथा अन्य लोगों को अधार्मिक कार्यों 'भी' वाद वाला कहता है - 'मैं भी सच्चा हूँ' अर्थात् मेरे सिवा दूसरे में रत नहीं रख पायेंगे । अत: उनके लिए सोना अच्छा है । परन्तु जो सम्प्रदायों का कथन भी सत्य है । वह भी किसी एक दृष्टि से सत्यवादी जीव धार्मिक है, रागी है, धार्मिक वृत्ति रखने वाले हैं, उनके लिए जागना है। दूसरे शब्दों में ही-मत के अनुयायी का कहना है कि दिन ही है और अच्छा है क्योंकि वे अनेक जीवों को सुख देते हैं। जब तक वे जागते भी मत के समर्थकों का कहना है कि दिन भी है अर्थात् जहाँ सूर्य नहीं रहेंगे तब तक अपने को तथा अन्य व्यक्तियों को धार्मिक कार्यों में रत हैं, वहाँ रात भी है। 'ही' और 'भी' के अभिप्रायों में बहुत ही अंतर है। रखेंगे। अत: उनका जागना अच्छा है । २८ । 'ही' के प्रयोग में एकान्तता का आग्रह समाया हुआ है । वह एक पक्ष जयन्ती - भगवन्! बलवान् होना अच्छा है या निर्बल होना ? के विचारों के समक्ष दूसरे के विचारों की अवहेलना करता है । अपूर्ण महावीर - जो जीव धार्मिक हैं अर्थात् धार्मिक वृत्ति वाले हैं, ज्ञान को पूर्ण मानकर मनुष्य को दिग्भ्रमित करता है जबकि 'भी' पक्ष उनका बलवान् होना अच्छा है, क्योंकि वे अपने बल का प्रयोग धार्मिक अपने विचारों के साथ-साथ दूसरे के विचारों का भी स्वागत करने के कार्यों में करेंगे जिससे दूसरे जीवों को सुख की प्राप्ति होगी और, जो लिए सतत् समुद्यत रहता है। यदि हम आम के विषय में कहते हैं कि जीव अधार्मिक वृत्ति वाले हैं, उनका निर्बल होना अच्छा है, क्योंकि वे आम में केवल रूप ही है, रस ही है, गंध ही है, स्पर्श ही है, तब हम अपने बल का प्रयोग, अधार्मिक कार्यों में करेंगे, जिससे अन्य जीवों को मिथ्या एकान्तवाद का प्रयोग करते हैं । यदि इसी को हम इस रूप में कष्ट पहँचेगा। कहते हैं कि आम में रूप भी है, रस भी है, गंध भी है, स्पर्श भी है, तब हम अनेकान्तवादी दृष्टिकोण का प्रतिपादन करते हैं । इस प्रकार 'ही' अनेकान्तवाद की उपयोगिता वाद विचार-वैषम्य एवं संघर्ष की स्थिति उत्पन्न करता है जब कि 'भी' अनेकान्तवाद कोई कोरी कल्पना नहीं बल्कि एक व्यावहारिक वाद विचार-वैषम्यता एवं संघर्ष को मिटाता है । सिद्धान्त है जिसका सम्बन्ध धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, वैचारिक आदि सभी क्षेत्रों से है । व्यावहारिकता के परिवेश में अनेकान्त अनेकान्तवाद और विभज्यवाद का अभिप्राय है . "व्यक्ति को एक ही अनुभव या एक ही ज्ञान पर विभज्यवाद अनेकान्तवाद का ही एक रूप है । विभज्यवाद आग्रहवान् न बनाकर अपने मस्तिष्क को ज्ञान के लिए उन्मुक्त रखना। का अर्थ होता है - किसी भी तथ्य को विभाजनपूर्वक कहना या प्रस्तुत तात्पर्य है कि हमको एक ज्ञान हुआ या एक अनुभव हुआ, उसी में अपने करना । सूत्रकृतांग में एक जगह प्रसङ्ग आया है कि भिक्षु को कैसी भाषा आपको न समेटकर, अपने मस्तिष्क को हर ज्ञान के लिए खुला रखना का प्रयोग करना चाहिए ? इसके उत्तर में कहा गया है कि भिक्षु चाहिए जिससे कि हम एक दूसरे के विचारों का लेन-देन भली-भाँति विभज्यवाद का प्रयोग करे ।२६ भगवतीसूत्र में गौतम और जयन्ती के कर सकें । दूसरे की बातों को भी हम अच्छी तरह से ग्रहण कर सकें साथ हुई भगवान् महावीर की बातचीत का उल्लेख है जो अनेकान्तवाद और अपनी बात को भी अच्छी तरह से दूसरों को समझा सकें । यदि और विभज्यवाद को प्रकाशित करता है, वह निम्नप्रकार है - हमें किसी वस्तु के यथार्थ स्वरूप को समझना है तो उसके अनेक गौतम - यदि कोई कहे कि मैं सर्वप्राण, सर्वभूत, सर्वजीव, पहलुओं को देखना होगा । एक पहलू से देखने से वस्तु के एक पहलू सर्वसत्व की हिंसा का प्रत्याख्यान (त्याग) करता हूँ तो क्या उसका यह का ही ज्ञान होता है । यथा - किसी मकान का एक तरफ से चित्र लेंगे प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है या दुष्पत्याख्यान ? तो वह चित्र मकान के एक पक्ष का ही ज्ञान करायेगा, जबकि दूसरा पक्ष Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306