Book Title: Bhupendranath Jain Abhinandan Granth
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 262
________________ तपागच्छ-कुतुबपुरा शाखा का इतिहास शिव प्रसाद तपागच्छ के ५०वें पट्टधर, प्रसिद्ध रचनाकार आचार्य रत्नमंडनगणि के शिष्य सोमजय हए। लक्ष्मीसागरसूरि द्वारा इन्हें सोमसुन्दरसूरि के शिष्य और मुनिसुन्दरसूरि, रत्नशेखरसूरि, लक्ष्मीसागरसूरि आचार्य पद प्राप्त हुआ। मंत्रीश्वर गदाशाह द्वारा निर्मित १०८ मन वजन आदि के आज्ञानुवर्ती आचार्य सोमदेवसूरि हुए। इनके एक शिष्य सुधानन्दन की ऋषभदेव की पित्तल की एक प्रतिमा जो आबू स्थित भीमाशाह के मंदिर हुए जिनके प्रशिष्य कमलकलशसूरि से तपागच्छ की कमलकलश शाखा में संरक्षित है, जिस पर उत्कीर्ण वि०सं० १५२५ फाल्गन सुदि ७ शनिवार अस्तित्व में आयी। सोमदेवसूरि के दूसरे शिष्य रत्नहंसगणि की शिष्यसन्तति के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। सोमदेवसूरि के तीसरे के चार लेख और वि० सं०१५२९ के एक लेख में तपागच्छीय आचार्य लक्ष्मीसागरसूरि, जिनहंस,सुमति सुन्दरगणि आदि के साथ सोमजय और शिष्य रत्नमंडन गणि हुए। इनके द्वारा रचित रंगरत्नाकरनेमिफाग उनके शिष्य जिनसोम का भी नाम मिलता है। जिनसोम द्वारा रचित (रचनाकाल वि०सं० १४९९/ई० स०१४४३), जल्पमंजरी, स्तम्भनपार्श्वजिनस्तोत्र, ऋषभवर्धमानजिनस्तोत्र, तारंगामंडननारीनिरासफाग, सुकृतसागर (रचनाकाल वि० सं० १५१७/ई०स० अजितनाथजिनस्तवन, महावीरस्तवन आदि कृतियां मिलती हैं। १४६१) आदि रचनायें प्राप्त होती हैं। सोमजय के चौथे शिष्य इन्द्रनंदि हए, जिनके द्वारा प्रतिष्ठापित कई जिनप्रतिमायें मिलती हैं, जो वि०सं० १५४० से वि०सं० १५७९ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है: क्रमांक संवत् तिथि/मिति प्राप्तिस्थान संदर्भग्रन्थ १. १५४० ज्येष्ठ सुदि२ सोमवार सुविधिनाथ जिनालय, मुनि जयन्तविजय पित्तलहर, आबू संपा० अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ४३२,४३४,४३५ २. १५४८ तिथिविहीन सीमधरस्वामी का मंदिर, अगरचंद भंवरलाल नाहटा बीकानेर संपा०, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ११९० १५५६ माघ सुदि६ शांतिनाथ जिना०, खंभात मुनि बुद्धिसागर, संपा०, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग२, लेखांक ८९८. १५५८ आषाढ़ सुदि ८ घरदेरासर, बडोदरा वही, भाग२, लेखांक २३१. १५५९ आषाढ़ सुदि ८ जैनमंदिर, सूतटोला, पूरनचंद नाहर, संपा०, वाराणसी जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४०४ १५६१ ज्येष्ठ दि२ सोमवार सुमतिनाथ मुख्य-बावन मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, जिनालय, मातर भाग२, लेखांक ५०६ १५६३ आषाढ़ सुदि... गुरुवार घरदेरासर, लखनऊ पूरनचन्द नाहर, पूर्वोक्त, भाग२, लेखांक १६१०. १५६३ शांतिनाथ जिनालय, मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, कनासानो पाडो, पाटण भाग१, लेखांक ३७५. १५६३ संभवनाथ देरासर, पादरा वही, भाग२, लेखांक १५. १५६९ मितिविहीन आदिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, भाग१, नाडलाई, लेखांक ८४९ तथा मनि जिनविजय, संपा०, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग२, लेखांक ३३८. ७... १५६३ ९. १५६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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