Book Title: Bhupendranath Jain Abhinandan Granth
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 263
________________ २२४ जैन विद्या के आयाम खण्ड-७ ११. १५७१ मितिविहीन वहीं नाहर, पूर्वोक्त, भाग१, लेखांक ८५७ तथा मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग२, लेखांक३३९. १२. १५७६ मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग२, लेखांक १३११ १३. १५७९ मितिविहीन जैनमंदिर, भांमासर नाहर, पूर्वोक्त, भाग२, लेखांक १३५४ वि०सं०१५५८ में इन्होंने अपने एक शिष्य धर्महंस को सौभाग्यनंदि के पट्टधर हंससंयम हुए, जिनके समय की कुतुबपुरा नामक ग्राम में अपने पट्ट पर स्थापित किया। कुतुबपुरा नामक वि० सं० १६०६ में लिखित एक ग्रन्थ की प्रति प्राप्त हुई है१२। स्थान से अस्तित्त्व में आने के कारण इसका नाम कुतुबपुराशाखा पड़ा। हंससंयम के शिष्य हंसविमल का नाम वि०सं० १६२१ के एक धर्महंस द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती और न ही इस सम्बन्ध में शिलालेख में उत्कीर्ण है।१३ यह शिलालेख विमलवसही, आबू से प्राप्त कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है किन्तु इनके शिष्य इन्द्रहंस द्वारा रचित हुआ है। इस शाखा से सम्बद्ध यह अंतिम साक्ष्य है। कुछ कृतियाँ मिलती हैं जो इस प्रकार हैं संयमसागर के शिष्य हंसविमल तथा हंससंयम के शिष्य १. भुवनभानुचरित्र (वि०सं०१५५४/ई०स०१४९८) हंसविमल एक ही व्यक्ति थे अथवा अलग-अलग! पर्याप्त साक्ष्यों के २. उपदेशकल्पवल्लीटीका (वि० सं०१५५५/ई०स०१५९९) अभाव में इस सम्बन्ध में ठीक-ठीक कुछ भी कह पाना कठिन है, फिर ३. बलिनरेन्द्रकथा (वि० सं०१५५७/ई०स०१५०१ भी समसामयिकता, नामसाम्य, गच्छसाम्य आदि को देखते हए दोनों ४. विमलचरित्र (वि० सं०१५७८/ई०स०१५२२) हंसविमलसूरि को एक ही व्यक्ति माना जा सकता है। इन्द्रनन्दिसूरि के एक शिष्य सिद्धान्तसागर ने वि०सं०१५७० संदर्भ में दर्शनरलाकर की रचना की। सिद्धान्तसागर की शिष्यपरम्परा आगे १. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्तइतिहास, चली अथवा नहीं इस सम्बन्ध में हमारे पास कोई जानकारी उपलब्ध मुम्बई १९३३ ई०, पृष्ठ ४९८, कंडिका७०९ नहीं है। मुनि चतुरविजय, मन्त्राधिराजचिन्तामणि अपरनाम जैनस्तोत्रसंदोह, इन्द्रनन्दिसूरि के एक अन्य शिष्य सौभाग्यनंदि हुए, जिनके भाग२, द्वारा रचित मौनएकादशीकथा' नामक कृति प्राप्त होती है। इनके द्वारा अहमदाबाद वि०सं० १९९२, प्रस्तावना, पृष्ठ १०४ तथा प्रतिष्ठापित कुछ जिन प्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं जो वि०सं०१५७१ H.D. Velankar, Jinratnakosha, Poona 1944 A.D., से वि० सं० १५९७ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है: P-433. १. १५७१ तिथिविहिन देवकुलिका का लेख मुनि जिनविजय, २-३ मुनि जिनविजय, संपा०, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भावनगर आदिनाथ जिना० पूर्वोक्त भाग२, १९२१ ई०स० लेखांक २४५, २५१, २५२, २५६ हस्तिकुण्डी (हथुडी) लेखांक ३३ मुनि जयन्तविजय, संपा० अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, उज्जैन २. १५७६ माघसुदि ५ शांतिनाथ जिना०, मुनि बुद्धिसागर, वि०सं० १९९४........., शातिनाथ पोल, गरुवार पूर्वोक्त, भागर, लेखांक ४०७,४०८,४१०,४११,४१८,४१९,४७२. मुनि चतुरविजयजी, पूर्वोक्त, पृष्ठ १०५-१०७. लेखांक१३११ अहमदाबाद वही, पृष्ठ १०६. ३. १५८८ ज्येष्ठ सुदि ५ वहीं वही, भाग१, मोहनलाल दलीचंद देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ ५२४-२५, कंडिका गुरुवार लेखांक १३२५ ७७०-७२ ४. १५९१ वैशाख वदि६ संभवनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग९, संपा०, शुक्रवार बालूचर, मुर्शिदावाद भाग१,लेखांक ५४ जयन्त कोठारी, मुम्बई १९९७ ई०, “तपागच्छ ५. १५९७. चैत्र सुदि१३ जैनमंदिर, मुनि बुद्धिसागर, कुतुबपुराशाखानिगममत पट्टावली" पृष्ठ १०७. गुरुवार चाणस्मा पूर्वोक्त, भाग१, जैनसाहित्यनो....., कंडिका ७५८, लेखांक १३१९. वही, कंडिका ७५८. इन्द्रनंदिसूरि के चौथे भी शिष्य संयमसागर का भी उल्लेख १०. जैनगूर्जरकविओ, भाग९, पृष्ठ १०७. मिलता है१०। इनके द्वारा रचित कोई कति नहीं मिलती और न ही किन्ही ११-१२ वही। अन्य साक्ष्यों से इस सम्बन्ध में कोई जानकारी ही प्राप्त होती है। इनके १३. मुनि जयन्तविजय, अर्बुदप्राचीन......, लेखांक १९६ शिष्य के रूप में हंसविमल का नाम मिलता है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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