Book Title: Bhupendranath Jain Abhinandan Granth
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 225
________________ १८६ जैन विद्या के आयाम खण्ड-७ पालन की सम्पूर्ण साधना करके दिखा दी है। मुगलों के जमाने में भी कला के सुन्दरतम नमूने रूप में एक उत्कृष्ट संगमरमर का तोरणबनवाकर दिल्ली और राजपूताना के राज्यों में अनेक शूर-वीर जैन वणिक हो उसने इस्लाम के पाक धाम मक्का शरीफ को भेंट रूप भिजवाया था। गए हैं जिन्होंने उच्च सेनाधिपतित्व जैसे पदों को शोभित किया है। अपने धर्म में चुस्त रहते हुए भी अन्य धर्म के प्रति ऐसी उदारता जिनके सेनाधिपतित्व में हजारों राजपूतों, मुगलों, अरबों और पठानों दिखलाने वाला और अन्य धर्म के स्थानों के लिए इस प्रकार लक्ष्मी ने बड़े-बड़े जङ्ग लड़े हैं, जयपुर, जोधपुर, उदयपुर आदि राजपुताना का व्यय करने वाला उसके समान दूसरा कोई पुरुष भारतवर्ष के के राज्यों के इतिहासों में इस बात के अनेक प्रमाण विद्यमान हैं। इतने इतिहास में मुझे तो अज्ञात ही है। जैनधर्म ने गुजरात को वस्तुपाल विवेचन से स्पष्ट है कि अहिंसा धर्म के उपासकों ने क्षात्रधर्म को जैसे असाधारण सर्वधर्म समदर्शी और महादानी महामात्य की अनुपम शिथिल कर दिया है या प्रजा के पौरुष को हतोत्साह बना दिया है- भेंट दी है। यह आक्षेप सर्वथा अज्ञानसूचक और इतिहास विरुद्ध है। शाह समरा और सालिग राष्ट्र सेवा वस्तुपाल और तेजपाल जैसे सर्वथा अद्वितीय भाग्यशाली पूर्व काल के जैन जितने धर्म प्रिय थे उतने ही राष्ट्र भरत तो नहीं किन्तु उनके गुणों के साथ अनेक प्रकार से साम्य रखने वाले भी थे और जितने राष्ट्रभक्त थे उतने ही प्रजावत्सल भी रहे। उनकी उनके बाद शाह समरा और सालिग यह बन्धुयुगल पाटण में हुआ। लक्ष्मी का लाभ धर्म, राष्ट्र, प्रजागण इन सब को समान रूप से उन्होंने अलाउद्दीन के प्रलयंकर आक्रमण के समय गूर्जर प्रजा की मिलता था। वे साधर्मिक वात्सल्य भी करते और प्रजासंघ को भी अनेक प्रकार से अद्भुत सेवा की थी। उन्होंने अपनी असाधारण भोज देते थे। वे जैन मंदिरों के अलावा सार्वजनिक स्थानों का भी राजकीय पहुँच के कारण गुजरात के सैकड़ों जैन और हिन्दू देव निर्माण करते थे। वे जैन जातिओं के साथ ही ब्राह्मण वर्ग को भी स्थानों का मुसलमानों के हाथों सर्वनाश होना रोक दिया था तथा सम्मान देते थे। शत्रंजय और गिरनार की यात्रा के साथ सोमनाथ की नष्ट-भ्रष्ट हुए देवस्थानों का पुनरुद्धार किया व कराया था। हजारों भी यात्रा करते और द्वारका भी जाते थे। प्रजाजनों को उन्होंने मुसलमानों के विघातक कैदखानों से मुक्ति दिलाई थी। पाटण का स्वराज्य नष्ट हुआ उस समय गूर्जर प्रजा को वस्तुपाल-तेजपाल आपत्ति के काल में आश्वासन देने वाले जो भी महाजन थे उनमें शाह वस्तुपाल तेजपाल बन्धुयुगल आदर्श जैन थे। जैनधर्म की समरा और उनके भाई अग्रणी थे। वस्तुपाल-तेजपाल के समान उनके प्रभावना के लिए जितने द्रव्य का व्यय उन्होंने किया इतना किसी सत्कृत्यों का इतिहास भी सुविस्तृत है। अन्य ने किया हो यह इतिहास में नहीं मिलता। मध्ययुग के इतिहास काल में जितने समर्थ जैन उपासक हो गए हैं उनमें वस्तुपाल सबसे जगडु शाह महान् था, जैनधर्म का यह श्रेष्ठ प्रतिनिधि था। एक साधारण जैनयति संवत् १३१३ से १५ तक गुजरात और उसके आस-पास के अपमान का बदला लेने के लिए उसने गुजरेश्वर महाराज वीसलदेव के प्रदेश में सर्वभक्षी ऐसा महाभयंकर दुष्काल हुआ जबकि वीसलदेव के सगे मामा का हस्तच्छेद करा दिया था। उसका स्वधर्माभिमान जैसे महाराजों और सिन्ध के बड़े अमीरों के लिए भी अपने आश्रितों इतना उग्र था। फिर भी जैन धर्मस्थानों के अलावा उसने लाखों रूपये को खाने के लिए अन्न देना दुष्कर हो गया था तब सामान्य प्रजा का खर्च करके जैनेतर धर्मस्थान भी बनवाये थे। सोमेश्वर, भृगुक्षेत्र, तो कहना ही क्या? ऐसी स्थिति में कच्छ भद्रेश्वर का रहने वाला शाह शुक्लतीर्थ, वैद्यनाथ, द्वारका, काशीविश्वनाथ, प्रयाग, गोदावरी आदि जगडु वणिक, जिसने आने वाले भयंकर दुष्काल की आगाही अपने अनेक हिन्दू तीर्थस्थानों की पूजा-अर्चा के निमित्त उसने लाखों का गुरु से सुन कर लाखों मन अनाज का संग्रह किया था उसे, उसने दान किया था। सैकड़ों ब्रह्मशाला और ब्रह्मपरियों का निर्माण किया दुष्काल पीड़ित प्रजा को खुले हाथ बाँट कर गुजरात के लाखों था। पथिक जनों के आराम के लिए जगह-जगह पर अगणित कुएँ मनुष्यों को उस समय जीवनदान दिया था। और वाटिकाएँ निर्मित की थीं, अनेक सरोवरों और विद्यापीठों का निर्माण किया। सैकड़ों अरक्षित गाँवों में दर्गों का निर्माण किया, आचार्य हीरविजयसूरि और भानुचन्द्र उपाध्याय सैकड़ों शिवालयों का पुनरुद्धार किया। सैकड़ों वेदपाठी ब्राह्मणों को अकबर के समय में हीरविजयसरि और उनके शिष्यों ने वर्षासन दिये। इन सब कार्यों से अतिविशिष्ट और अनुपम कार्य तो अपने उपदेश कौशल द्वारा अकबर को प्रसन्न किया था और उससे उसने यह किया कि मुसलमानों को नमाज पढ़ने के लिए अनेक गुजरात की समस्त प्रजा के लिए प्रजा-पीड़क जजिया कर से माफी मस्जिदों को बनवाया। हजारों रूपयों का खर्च करके गुजराती शिल्प- दिलाई थी। अकबर के सैन्य ने जब सोरठ जीत लिया तब उसने वहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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