Book Title: Bhavarivaran padpurti Stotra Sangraha
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ प्रस्तावना जैन साहित्य की विविध विशेषताओं में पादपूर्ति साहित्य भी एक है। ११ वर्ष पूर्व मैंने अपने 'जैनपादपूर्ति साहित्य' शीर्षक लेख में तब तक ज्ञात समस्त छोटे बड़े जैन पादपूर्ति रचनाओं का परिचय प्रकाशित किया था, जो कि 'जैन सिद्धान्त भास्कर' के भा. ३ कि० २१३ में प्रकाशित हुआ था। अद्यावधि प्राप्त पादपूर्ति काव्यों में सब से प्राचीन श्रा. जिनसेन का पार्श्वभ्युदय काव्य है, जो कि महाकवि कालिदास के मेघदूत की समग्र पादपूर्ति के रूप में बनाया गया है । श्रा. जिनसेन का समय : वीं शती है । इसके पश्चात १५ वीं शती से यह क्रम पुनः चालू होता है, और १७ वी १८ वीं शती में बहुत तेजी पर आ जाता है, जोकि अबतक विद्यमान है । मेरे पूर्वोक्त लेखमें मेघदूत के ७, शिशुपाल वध के १. नैषध के 1, पादपूर्ति काव्य, एवं जैन स्तोत्रों में भक्तामर पर १७, कल्याणमंदिर परं ५, उवसग्गहरं पर १, (तेजसागर रचित ) संसारदावा की ५ *, अन्य स्तुतियों की ५; जैनेतर महिम्न स्तोत्र पर १, कलाप सन्धि पर १,अमरकोष प्रथम श्लोक को १, पादपुर्ति रचनाओं का परिचय दिया गया था। उसके पश्चात् और भी अनेक रचनाओं का पता चला है, जिनका नामोल्लेख यहां कर दिया जाता है१-रघुवंश तृतीयसर्ग पादपार्तरूप जिनसिंहसूरि पदोत्सव काव्य र. उपा. समयसुन्दर (प्रेस कापी, हमारे संग्रह में) २-किरातार्जुनीय प्रथमसर्ग समस्या पर्वलेख, पत्र , विजय धर्मसूरि ___ज्ञानमंदिर, आगरा. नमें नं ३ का रचयिता वानसागर है, जिसकी प्रति हमारे संग्रह में हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55