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(८)
प्रस्तावना।
८. ॥
२२ से २५. जिनचन्द्रसूरिजी गीत गा. १४-७-५-४
२६. सनतकुमार गीत गा २४ २७.भरतचक्री सज्माय गा. ८ २८, चादह गुण स्थान स्तवन
गा. २१ २६. दशार्णभद्र गीत गा. ६ ३०. बाहुबलि सज्माय गा.१४ ३१. १२ भावनामय पार्श्वस्तव गा. १२ ३२. जंबू गीत , ८ ३३. वयर स्वामी गीत , ३ ३४, पंचेन्द्रिय सज्झाय ,, ३५. स्थूलिभद्र गीत ,, ४ ३६. मोहविलास गीत , ३७ सीमंधर स्तवन ,, १६ ३८. शत्रुजय स्तवन , ३६. यमकालंकार शृंखलाबद्ध स्तवन गा. ३६ ४०. चतुर्विशतिजिन स्तवन गा. २५
ज्ञानतिलक जिस प्रकार विद्वान गुरु के श्राप विद्वान शिष्य थे, उसी प्रकार आपके मी ज्ञानतिलक नामक सुयोग्य शिष्य थे। सं. १६४५ में रचित जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति वृत्तिका प्रथमादर्श आपने लिखा था,जिसका उल्लेख पूर्व किया जा चुका है।सं. १६६ ० की दीवाली को आपने गौतम कुलक की विस्तृत टीका बनाई अन्य फुटकर प्राप्त कृतियों में (१) नेमिधमाल गा. ४६, (२) पार्श्वस्तवन गा. ७, (३) नंदीरेण सज्झाय गा. २३, (४) नारी त्याग वैराग्य गीत गा. ११ (५) नेमिनाथ गीत गा. १६ (६) प्रहेलिकाएं आदि हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रकाशित पार्श्वलघुस्तव अवचूरि की लेखन प्रति से ज्ञात होता है कि पद्मराजजी के अन्य शिष्य कल्याण कलश थे, जिनके शि, उपा. आनन्द विजय शि• वाचनाचार्य सुखहर्ष शि• नयविमल के सतीर्थ भुवननंदन सं. १७४१ तक विद्यमान थे। प्रमाणाभाव से इसके भागे कब तक आपकी परंपरा विद्यमान रही, नहीं कहा जा सकता।
अगरबंद वाटा
दीपमालिका सं० २००४ बीकानेर
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