Book Title: Bhavarivaran padpurti Stotra Sangraha
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Samiti

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Page 11
________________ प्रस्तावना ३. श्रादिनाथ स्तवन गा. २६. बीकन्यर, प्रकाशित ४. श्रादिनाथ स्तवन 1. पैतीस अतिशय गर्भित स्तवन गा. १७ ६. जिन प्रतिमापूजा स्तोत्र गा. १५ हमारे संग्रह में ७. ८. नेमिस्तवन गा. ५-६, ____.. पार्श्व जन्माभिषेक स्तवन गा. १६ जेसलमेर संग्रह में १०. संखेश्वरपार्श्व स्तवन गा. ५ ११. पार्श्व स्तवन गा. ७ १२. वीर स्तवन. गा. २१, सं. १३. भी सीमंधर श्रष्टक संस्कृत गा १४. गौतमगीत गा. ५. १५. मणिधारीजिनचन्द्रसूरि अष्टक गा. ६ १६. नववाड़ ब्रह्मवत सज्माय. गा. २० १७. चौसरण गीत गा. ६. १८. नमि राजर्षि गीत गा. ५४. १६. पंच निग्रंथी सज्माय गा. ८. २०. वैराग्य सज्झाय गा. १२. उपाध्याय पद्यराज उ. पद्मराज भी अच्छे विद्वान थे। आपके नामकी दीक्षित राज नंदी पर विचार करने पर आपकी दीक्षा सं. १६२३ के लगभग होनी चाहिए । सं. १६२८ में अहमदाबाद में श्रापके लिखित धर्मशिक्षा सावचूरि पत्र ३ प्राप्त है । जिसका पुषिका लेख इस प्रकार है “लिखिता श्रीपुण्यसागरोपाध्याय मतल्लिकानां पादपद्मचचरीकेण पं. पद्मराज मुनिना। श्रीअहमदावाद महानगरे। सं. १६२८ वर्षे ज्येष्ट ३ दिनेगाधर्मशिक्षा कठिन काव्य है, उसे शुद्ध लिखने के लिये कम से कम १८-२० वर्ष की आयु अपेक्षित है, एवं दीक्षा समय १६२३ में १३ वर्ष के भी तो जन्म सं. १६५० के लगभग संभव है सं. १६४०-४५ में स्वगुरु रचित वृत्तियों में आपके सहाय करने का उल्लेख पूर्व आ ही चुका है। प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रकाशित दराडक वृत्ति सं. १६४३ के (संवत् के उल्लेख वाली ) आपकी सर्वप्रथम रचना है, और सं. १६६६ की शेष रचना मनतकुमार गस हैं। किसी भी अन्य व.वि के रचित काव्य के । चरण को लेकर ३ चरण स्वयं बनाकर उसे अात्मसात कर लेना कठिन एवं विद्वत्तापूर्ण कार्य है। प्रस्तत रचना पधराज की विद्वता की परिचाम । इस अन्य में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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