Book Title: Bhavarivaran padpurti Stotra Sangraha
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Samiti

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Page 9
________________ (४) प्रस्तावना। कुक्षि से सं. १५२४ में भापका जन्म हुआ था । सं. १५३५ में १२ वर्ष की अल्पावस्था में जेसलमेर में आपने दीक्षा ग्रहण की थी। सं१५५५ *के ज्येष्ठ शुक्ला ६ को बीकानेर के मंत्रि कर्मसिंह वच्छावत ने लक्ष पीरोजे द्रव्य व्ययकर प्राचार्य शान्तिसागरसूरि से सूरिमंत्र दिलाया,उस समय मंत्रीश्री ने पदोत्सव बड़े समारोह से किया ।प्रामानुगाम विहार कर धर्म प्रचार करते हुए एक समय आप आगरे पधारे । श्रीमालज्ञातीय डुंगरसी और उसके भाई पामदत्त ने प्रवेशोत्सव बड़े धूमधाम से किया, जिसका वर्णन उ.भक्तिलाभ रचित गीत xमें पाया जाता है। बादशाह सिकन्दर ने पिशुनों के कथन एवं इर्ष्यावश आपको बंदी कर लिया पर आपने उसे चमत्कार दिखाकर ५०० कैदियों को छुड़ा "बंदी छोड़" विरुद प्राप्त किया। इससे जैन शासन की बड़ी प्रभावना हुई । स. १५८२ (१५७२?) में आपने प्राचारांगसूत्र की दीपिका बीकानेर में बनाई । आपके रचित कल्पान्तर्वांच्य की ६७ पत्रों की प्रति डुंगरजी भन्डार जैसलमेर में प्राप्त है । आपने अनेकों विद्वानों को उपाध्यायादि पद प्रदान किये और मंदिर व मूर्तियों की प्रतिष्ठाऐं की । सं. १५८२ में धर्म प्रचार करते हुए आप पाटण पधारे और ३ दिन का अनशन कर स्वर्ग सिधारे । * महोपाध्याय पुण्यसागर भापके शिष्य हर्षकुल रचित गीत के अनुसार आप उदयसिंह की धर्म पत्नी उत्तमदेवी के पुत्र थे। जिनहंससूरि के शिष्य होने के कारण आपकी दीक्षा १५८२ के पूर्व ही संभव है । उस समय १०/१२ वर्ष की आयु रही किसी पहावलि में सं, १५५६ लिखा है सम्भवतः इसका कारण मारवाड़ी गुजराती संवत प्रचलन समय का फेर है। ३ ४३. . जैन काव्य संग्रह पृ. ५३. ४ देशाई, वेलणकरादि ने इसका रचनाकाल सं० १५८२ लिखा है पर संभवतः १५७२ होगा। दीपिका की प्रशस्ति में "मुनि शरचन्द्रमित वर्षे" पाठ है, संभव है कि मुनिके आगे का द्वि. शब्द छूट गया हो। ' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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