Book Title: Bhavarivaran padpurti Stotra Sangraha
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Samiti

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Page 8
________________ प्रस्था समर्थ विद्वान थे, अापके अन्य अनेक सुन्दर स्तोत्र, काव्य एवं सैद्धान्तिक अन्य उपहब्ध हैं, जिसका संग्रह एक स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में प्रकाशित करने का मुनि विनयसागरजी का विचार है, अतः उनके सम्बन्ध में उसी ग्रंथ में प्रकाश डाम जायगा। भावारिवारण समसंस्कृत भाषा में है, ऐसी रचना निर्माण करने के लिये भाषा पर पूर्ण अधिकार एवं सन्दचयन के लिये विशाल शब्दकोष-ज्ञान अपेक्षित है, प्राचार्यश्री की विद्वता असाधारण थी, प्रस्तुत कृति आपकी सफल रचना है । ऐसी अन्य रचनाएं इनीगिनी ही प्राप्त है । समसंस्कृत में रचना का प्रारंभ आ• हरिभद्रसूरिजी के संसारदावा स्तुति से होता है । रसी ग्रंथ में प्रकाशित दूसरी रचना पार्श्वस्तोत्र पद्मराज की स्वोपज्ञ वृति महित है,) और तीसरी रचना संग्राम नामक दण्डकमयी जिनस्तुति के रचयिता भुवनहिताचार्य हैं, जिनके रचित नेमिनाथ स्तोत्र (गा. २५ आदि पद-सिरी मिरीसर रेक्य मंडल के अतिरिक्त कुछ मी ज्ञात नहीं है । ऐसी दण्डक स्तुतिये ४-५ ही अवलोकन में आई हैं, इसका छंद वहा लम्बा होता है । यह कृति मुक्ताहितसूरिजी की विद्वता की सूचक है। मावारिवारण पादपूर्ति के रचयिता की गुरूपरंपग इस प्रन्य में प्रकाशित *'भावारिवारण पादपूर्ति स्तव' आदि के रचयिता वा. पनराज खरतरगच्छाचार्य जिनहंससूरिजी के विद्वान शिष्य महोपाध्याय पुण्यसागरजा के शिष्य थे, अतः जिनहंससरि और महो. पुण्यसागरजी का संक्षिप्त परिचय देकर आपकी साहित्य सेवा एवं शिष्य संतति का दिग्दर्शन कराया जा रहा है। जिनहंसमरिः-श्राप जिनसमुद्रसूरिजा के पट्टधर थे। सेत्रावा नगर वास्तव्य चोपड़ा गोत्रीय सा. मेघराज की धर्मपत्नी कमलादे (महिगबदे) की *मूल भावारिवारण स्तोत्र काव्यमाला में एवं जयसागर उपाध्याय की वृति सहित हीरालाल हंसराज द्वारा प्रकाशित हो चुका है। इस स्तोत्र पर मेरुसुन्दर आदि की अन्य कई वृत्तिये, अपचुरि, और रबादि उपजाय हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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