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Copy forwarded to the Editors of the papers in the Punjab and C. P. with the request that they would be gracious enough to please publish this letter in their respective papers.
GOPI CHAND B. A., Vakil
President.
इसका भावार्थ इस प्रकार है :
आवश्यक होने के कारण लेखक महानुभावों ने जैन-धर्म के विषय में भी तीन चार पृष्ठों का लेख लिखा है । उस में उन्हों ने अपने मन्तव्यानुसार जैन-धर्म के मूल प्रवर्तक श्री महावीर स्वामी का चरित्र वर्सन किया है । परन्तु हम यह जोर से कह सकते हैं कि यह लेख अप्रामाणिक, भ्रमीत्पादक और जैन समाज के धार्मिक भावों को ठेस लगानेवाला है । इस से जनता और विद्यार्थियों को इस धर्म का ठीक २ परिचय नहीं हो सकता ।
नीचे कुछ ऐसी बातें दी जाती हैं जो सर्वथा अशुद्ध, आपतिजनक और पुनः विचारणीय हैं :
१- "हम जैन धर्म की नीव डालनेवाले महावीर की कथा लिखते हैं ।"
२ - " वह पार्श्वनाथ के टोले के साधुओं में मिल गये।"
३ - "वह कई साल तक इस टोले में सम्मिलित रहे परन्तु उनको मानसिक शान्ति प्राप्त नहीं हुई, अतः जब उनकी आयु ४० साल के लगभग थी, उन्होंने इस टोले से अपना