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वेषभूषा में महदन्तर है ।। श्वेत बर साधु पीले वस्त्र श्रोढ़ते हैं और हाथ में एक लंबा डंडा रखते हैं परन्तु दिगंबर साधु नग्न रहते हैं और उनके पास मोर पिच्छी और कमण्डलु के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता । स्थानक वास साधु सफेद वस्त्र पहनते हैं और मुख पर सफेद मुंहपत्ति बाँधे रखते हैं । यह इनकी पहचान है ।
पं० शिवशंकर मिश्र जी ने जो चित्र पुस्तक में दिया था वह न जाने उन्हें कहाँ से प्राप्त हुआ था । उस चित्र में दिखाये गये अरिहंत भगवान का सिर रुण्ड मुण्ड था । मस्तक पर अच्छा खासा जैन तिलक था। मुंह पर मुंहपत्ति भी बिराजती थी । बदन पर कोट सा भी पहना हुआ था। इससे स्पष्ट है कि वह चित्र किसी भी संप्रदाय को मान्य न था, वरन् स्वभ्य जनों
दृष्टि में जैन धर्म का खाका उड़ाने वाला था ।
यह तो हुआ चित्र का वर्णन । श्रव वास्तविक लेख की बाबत सुनिये। हम यहाँ पूरा लेख देकर पाठकों को वृथा कष्ट नहीं देना चाहते । यहाँ केवल वेही बातें देदी जावेंग : जिनपर विशेष आपत्ति है।
हमने यह सब दोष पं० शिवशंकर ज को लिख भेजे थे परन्तु उन्होंने पत्र की पहुँच तक न दो । तब विवश हो प्रेस में यह मामला देना पड़ा, जिससे सर्वसाधारण को इस लेख के दोषों का पता लगे । मद्रास से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजा