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(७१) जैन धर्म के माने हुये २४ तीर्थंकरों में से अव्वल तीर्थङ्कर थे
और भगवान् पारसनाथ जी तेईसवें और महावीर स्वामी चौबीसवें तीर्थंकर थे। और उन्होंने ठीक उन्हीं उसूलों का प्रचार कियो जिन का कि भगवान् पारसनाथ जी और उन से पहिले बाईस तीर्थकरों ने प्रचार किया था । न पारसनाथजी जैन मज़हब के बानी थे और न भगवान् महावीर स्वामी ने जैन धर्म से अलग कोई नया फिरका निकाला।
उम्मीद है कि मन्दरजा बाला अमूर को मद्दे नज़र रखते हुये आप को बमशवरा लायक मुसन्नफीन किताब में मंदर्ज मज़मून को दुरुस्त कराने में कोई एतराज न होगा। हमारा मनशा इस से महज़ यह है कि तुलबा के दिलों पर गलत वाक्यात नक्श न हो। किसी किस्म का झगड़ा करना हमारा काम नहीं और नाही हम इस किस्म के बहस मुबाहिसों को पसंद ही करते हैं। अगर आप कम अज़ कम दूसरे एडीशन में भी दुरुस्त मज़मून का दरज़ करना मनजूर कर लें तो हमारे लिये मूजिबे इत्मीनान होगा। यह निहायत मुनासिब होगा अगर "हाईरोड" के ही तरमीम शुदह मज़मून का तर्जुमा करके दूसरे एडीशन में दरज कर दिया जावे । क्योंकि वह मज़मून जैन धर्म के आलिमों से वाजिब तौर पर पास हो चुका है और इस में किसी को एतराज़ नहीं होसकता । उम्मीद वासिक है कि निहायत जलदी तसल्ली बख्श