Book Title: Bharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Author(s): Bhagmalla Jain
Publisher: Shree Sangh Patna

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Page 104
________________ ( 8 ) इनके पत्र का भावार्थ यह है: "....."आप यह कभी ख्याल न करें कि मैंने आपसे अनुचित व्यवहार किया है । मुझे तो स्वप्न में भी ऐसा विचार नहीं है। मैं कुछ दिनों से बीमार था । अब यद्यपि कुछ अच्छा हूँ, परन्तु डाक्टरों के कथनानुसार लिखने पढ़ने का कार्य नहीं कर रहा हूँ। __ मेरी पुस्तक में कुछ छोटी २ बातों के अतिरिक्त जैन धर्म यो अन्य किसी धर्म के विरुद्ध कोई लेख नहीं है। तथापि मैं विचार पूर्वक अगले संस्करण में आपकी इच्छानुसार संशोधन करने के लिये तैयार हूँ। जहां मैं आपसे सहमत न हो सकूँगा मैं सहर्ष नीचे नोट में आपकी सम्मति दरज कर ___ आपने स्वयं इस बात को माना है कि सनातनी होते हुए भी मैंने जैन और जैन धर्म पर कोई आक्रमण नहीं किया। वास्तव में मैं कट्टर नहीं हूँ और सभी मोक्ष-पथ-प्रदर्शक धर्मो के लिये मेरे हृदय में सन्मान है । मेरे बहुत से मित्र और शिष्य जैन धर्मानुयायी हैं। मैं अखबारों में लिखने लिखाने की कोई आवश्यकता नहीं समझता......... आशा है कि दूसरे संस्करण में यह सब दोष दूर हो जायेंगे।" हम श्री द्विवेदी जी की सहृदयता और गुण ग्राहकता के लिये

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