Book Title: Bharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Author(s): Bhagmalla Jain
Publisher: Shree Sangh Patna

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Page 112
________________ (१०६ ) (५) बुद्ध धर्म के साथ २ जैन धर्म शुरु हुन्मा,-इस की तशरीह फिकरा नं०१ में हो गई। (६) ज्यादहतर एतराज इस फिकरे पर था मैंने इस के मुतअल्लिक यह तहरीर किया थाः___ जैनियों का सबसे बड़ा अखलाकी उसूल है कि कोई किसी को तकलीफ़ न दे । इस उसूल को जैनियों ने इस दरजे तक पहुँचाया है कि जैनी होना बाज़ लोगों की निगाह में पूरे दरजे की बुज़दिली है । लेकिन जैनी विद्वान् धर्मयुद्ध में सड़ने को पाप नहीं समझते।" मैंने इसके जवाब में यह अरज किया था कि मैंने यह ख्याल सिर्फ चंद आदमियों की निसवत मनसृष किया है। और अपना ख्याल जाहिर नहीं किया । मेरा मतलब हरगिज इस फिकरे से वह न था कि मैं जैनियोंकी तौहीन करूं क्योंकि मैंने इसके साथ ही यह भी लिख दिया था कि जैनी साधु बाकी तमाम फिरको के साधुओके मुकाबिले में ज्यादह रास्तबाज़, ज्यादह त्यागी और ज्यादह बे गरज़ हैं" इससे मालूम होगा कि जैनी साधुओं व बजुर्गों के लिये मेरे दिल में फिस कदर श्रद्धा भक्ति है। मैं किसी को भी दिलाजारी करना नहीं चाहता और मुझे इस फिकरे को दूसरे एडीशन में से निकाल देने में कोई एतराज न होगा। नं. ७ की बाबत मैं इसब जैल लिख चुका हूँ:

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