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( ११२ ) वर्धमान की आयु ४० वर्ष के लगभग थी। धीरे २ उस के शिष्य बन गये । वर्धमान ने जो मत चलाया वह जैन धर्म के नाम से विख्यात हुश्रा......( पृष्ठ ६६, पंक्ति १७)
२-ये २४ जिन की पूजा करते हैं और ईश्वर में विश्वास नहीं करते । पृष्ट ७७ पंक्ति ११, पृष्ठ ८० पंक्ति, १६
३-दोनों ही मत लगभग एक ही समय पर और एक ही प्रदेश से प्रारंभ हुए ( पृष्ठ ८० पंक्ति १५ )
४-निर्वाण के अर्थ के अतिरिक्त.जैनीलोग नितांत नास्तिक हैं ( इस वाक्य का आशय हमारी समझ में कुछ नहीं
पाया)
इन आनेपों को सविस्तर उत्तर देने की कदाचित श्राव श्यकता नहीं, निम्न लिखित पुस्तके श्राप की सेवा में भेजी जाती हैं । इन के अवलोकन से आप के सभी संशय दूर हो जावेंगे, ऐसा हमें निश्चय है। ___ मैं यह भी बता देना चाहता हूँ कि कदाचित यही आक्षेप दुसरे तीन चार इतिहासों में भी देखने में आये हैं। उनसे पत्र व्यवहार किया गया और उन सबने या ता इन्हें हम री इच्छानुसार शुद्ध कर दिया है या ऐरदिया है । यहां तक कि पआब के शिक्षा बातको सुन कर हमें आभारी किया है। यह स पुस्तकरूप में छप रहा है।