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(१०७) "मैं इसकेकरे को निकालने के लिये तैयार हूँ. क्योंकि मैं यह दुरुस्त ख्याल नहीं करता कि चंद अफराद की कार्रवाई से तमाम जमाअत को मत्तऊन करार दिया जाये। यह फिकरा सहवन लिखा गया है।"
यह तमाम फिकरात अक्तूबर, १६.३ के खत में दरज हैं। असल वजह जैनी लाहिबान को खफ़गी की यह है मैंने अभी तक दूसरी एडीशन शाया करके यह दुरुस्तियां नहीं की। जिसका सबब यह है कि मैं इस अरसा में ज्यादहतर बीमार रहा और अदीमउल फुरसत भी रहा । मेरी किताब का हिंदी एडीशन खतम हुए जायद अज तीन साल हो चुके हैं । उर्दू को भी सिर्फ चंद कापियां बाकी हैं । नया एडीशन शायान करने से मेरा अपना नुकसान हो रहा है। मैं पुरानी तारीख को दो बारह इसी शकल में शोया करना नहीं चाहता, क्योंकि जदीद तहकोकात से कई ऐसी बातें मालूम हुई हैं जिनका नए एडीशन में दरज करना या जिनके हवाले से मजमून किताब का दुरुस्त करना ज़रूरी है।..... __""मैं तो इस वक्त किसी मजहकी सोसायटो का मेम्बर नहीं हूँ और मेरे लिये हिन्दू कौम के सब फिरके व संप्रदाय काविले इज्जत हैं, मैं सब की खिदमत करना चाहता हूँ, किसी की दिनाजारी करना या किसी के खिलाफ ताअस्सुव फैलाना