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( १०५ ) का हवाला दिया है जो जैनी साहबान ने मेरे बयानात पर किये हैं:
अव्वल यह है कि जैन मज़हब की बुनियाद महात्मा पार. सनाथ जी ने डाली । जैनी साहबान का यह बयान है कि अव्वल बानी जैन धम ऋषभ देव जी थे। जैनियों के २४ तीर्थकर हुए जिन में २३ वे महात्मा पारसनाथ जी और २४ व महावीर स्वामो थे । मुझे इस बयान के दरज करने में कोई एतरोज नहीं।
दूसरा फिकरा जैन धर्म व बुद्ध धर्म के पोलीटिकल असरात के मुतअल्लिक था । इस से मेरा हेरगिज़ मनशा यह न था और न है कि जैन धर्म की तौहीन की जावे. अपनी किताब सुफहा १८१ पर मैंने यही राय वेदांत के मुतअल्लिक भी जाहिर की है।
(३) एतराज़ यह था कि मैंने लिखा है कि जैन धर्म की तालीम बुद्ध धर्मके मुशावह है। इसमें मुझे कोई अमर काबिले एतराज मालूम नहीं होता।
(४) चौथा एतराज़ इस बयान पर था कि जैनी ईश्वर की हस्ती नहीं मानते । जैनी साहबान कहते हैं कि हम ईश्वर की हस्ती तो मानते हैं. मगर उसको कर्त्ता नहीं मानते । यह सबाल सिद्धान्त का है इस में कोई अमर दिलाज़ारी का नहीं और न मुझे इस में कोई दखल देने की ज़रूरत है।