Book Title: Bharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Author(s): Bhagmalla Jain
Publisher: Shree Sangh Patna

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Page 115
________________ ( १०६ ) मेरे मुखालिफ फरोक के घोटरान को मा कूल तादाद इस मज़ा हब से ताल्लुक रखनेवालों को है । मैं अपने जैनी भाइयों को यकीन दिलाता हूं कि उन के इस फैल से मेरे दिल में उन की तरफ से कोई नाराजगी नहीं है । मैं उन का सच्चा दोस्त हूँ हमेशा से था और हमेशा रहूंगा और अगर उनको खास तौर पर कभी मेरी खिदमत की ज़रूरत हो तो मैं इस को तनदही से बजा लाऊँगा । जिस कर गलती मैंने तसलीम की है, उस की तलाफ़ी भी मैं ज़रूर कर दूंगा । इस लिए नहीं कि कभी फिर शायद मुझे उन की इमदाद की ज़रूरत हो बल्कि इस लिए कि खिदमतगुज़ारी और इकबाल ग़लती और गलतीके लिये तलाफ़ी करना मैं अपनाधर्म समझता हूँ। जिन जैनी बजुर्गो' ने उसूलन् इस मौके पर मेरी मदद की उनका मैं दिल से मश्कूर हूँ।" इस पत्र से तो कुछ संतोष होता है। प्रोशा है कि लाला जी शीघ्र ही इन त्रुटियों को दूर कर देंगे।

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