Book Title: Bharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Author(s): Bhagmalla Jain
Publisher: Shree Sangh Patna

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Page 110
________________ ( १०४ ) मेरी तारीखहिंद सन् १६-२ ई० में शाया हुई थी, जब मैं जेल में था । मैंने उस का मसविदा जेल में ही तैयार किया था, ताहम मैं उसके किसी हिस्से की जिम्मेवारी से इनकार नहीं करता । जब मैं जेल से रिहा हुआ तो जैनी साहबान ने मेरी तहरीर की बाज़ बातों पर एतराज किया जिसका जवाब मैंने एक चिट्ठी के जुरोये लाला टेकचन्द जैनरल सैक्रेटरी जैन भा, जंडियाला गुरु के नाम भेजा और उसकी नकल अखुबार "वंदे मातरम्" मुवरिखा १४ अक्टूबर सन् १६२३ में शाया कराही । उस के जवाब के बाज़ हिरुले दर्ज किये जाते हैं । उसमें मैंने तहरीर किया था: (१) "मैं जैन बजुगों के त्याग और जैन धर्म की अहिंसा वृत्ति का मद्दाह हूँ" ( २ ) अगर धार्मिक सिद्धान्तों के मुताकि कीं कोई ऐसा बयान मेरी तारीख में मौजूद हो जो हकीकृत के खिलाफ हो और जो आप साहिबान की दिलाज़ारी का मूजिब हुआ हो तो मैं उसकी तलाफ़ी करने के लिये तैयार हूँ। और उसका बेहतरीन तरीका मुझे यह मालूम होता है कि आप इनके म्रुतअलिक एक मुखतसिर सा बयान लिख कर मेरे पास भेज दें, मैं तारीख़ मज़कूर की दूसरी अशायत में उसको बतौर नोट आप की तरफ़ से शाया कर दूंगा ।" उसके बाद मैं यकेबाद अज़ दीगरे उन सात एतराज़ात

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