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(५) भारतवर्ष का इतिहास
भाग पहला ( लेखक-लाला लाजपतराय जी)
प्राप की पुस्तक में भी जैन धर्म पर बहुत कुछ कीचड़ फेंका गया है। आपके लेख के विरुद्ध यहां से पत्रों में बहुत कुछ लिखा गया, भारी आन्दोलन किया गया, परन्तु अब दो या तीन वर्ष के पश्चात् लाला जी ने कुछ दबी श्रावाज़ से उन को सुधारने का वचन दिया है । उन को पुस्तक में क्या दोष हैं इस बात का सविस्तर ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमारी पुस्तक “लाला लाजपतराय और जैनधर्म" देखिए ।
२८-१०-२६ को लाला जी अम्बाला शहर पधारे थे। हम ने उन से मिलकर इस सम्बन्ध में बात चीत करना चाही, परन्तु लाला जी न मिल सके । फिर हमारे और उन के बीच जो पत्र व्यवहार हुआ उस की पूरी नकल नीचे दी जाती है। "मान्यवर श्रीमान लाला लोजपतराय जी !
जय जिनेश्वरदेव ! अरज़ यह है कि आप अम्बाला शहर में तशरीफ लाये । लोकल जैन बिरादरी के १५ के करीब