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(६२) लिखे देते हैं और पूर्ण आशा है कि आप अपनी सौजन्यता
और सहृदयता के भावों को काम में लाकर उन पर ध्यान देंगे और अगले संस्करण में उनको शुद्ध कर देंगे।
(१) पृष्ठ ३७-पंक्ति थे विद्वान उपनिषदों से निकले हुये दर्शनशास्त्र के सिद्धान्तों का मनन करते और सर्वसाधारण के कर्मकाण्ड से चिढ़ते थे।"
जैन फिलासफी एक स्वतंत्र फिलासफी है। उपनिषदों का इस पर प्रभाव नहीं पड़ा । जैनियों का दावा है कि उनको यह फिलासफी प्राचीनतम है।
(२) पृष्ठ ३८, अन्तिम ३ पलियाँ:
"पर कई दार्शनिक ऐसे भी थे जो वेदों को भी नहीं मानते थे। ये नास्तिक कहलाते थे, क्योंकि मनुजी ने वेद के न मानने बाले को हो नास्तिक कहा है।"
(३) पृष्ठ ३६-१-पंक्ति सम् ईस्वी से .५० वर्ष पूर्व दो नास्तिकमतों का जोर दिनों दिन बढ़ता जाता था।ये दोनों जैन और बौद्ध मत थे।"
आपका इन दोनों मतों को नास्तिक कहना सर्वथा अनुचित है। वेदों का न मानना ही नास्तिकता का प्रमाण नहीं हो सकता। Islam, Christianity & Sikhisin भी तो वेदानुयायी नहीं और नाही वे धेदों का प्रादर करते हैं, फिर भी आजकल किसी ने उनको नास्तिक कहने का साहस