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उसकी भी एक नकल छापकी सेवा में भेज रहे हैं ।
( ५ ) पृष्ठ ४० पंक्ति ५ – " किसी किसी का कहना है कि बङ्गाल के पारसनाथ पर्वत के शिखर पर १०० वर्ष की पूर्ण अवस्था में वे निर्वाण पद को प्राप्त हुये” – यह सर्वथा शुद्ध है। जैन धर्म की ऐसी मान्यता नहीं ।
"पटना जिले के पावा ( गावापुरी ) नामक स्थान में सन् ईस्वी से पूर्व ( सन् ) ५२७ में उनका निर्वाण होना ठीक है। और सभी को मान्य है । हमारे सभी ट्रैक्टों पर वीर संवत् ( श्री वीर निर्वाण संवत् ) छपा है ।
दूसरे श्री महावीर स्वामी की आयु ७२ वर्ष की थी १०० वर्ष की नहीं । प्रचलित इतिहास और जैनों का कल्पसूत्र इस बात का प्रमाण है । १०० वर्ष की आयु तो श्री पारसनाथ जो की थी और सम्मेद शिखर पर उन्हीं का निर्वाण हुआ था ।
(६) पृष्ठ ४० पैरा दूसरा - " पारसनाथ ने महावीर से २०० वर्ष पूर्व " ( जन्म लिया ) " - यहां २०० के
स्थान में ३५० चाहिये ।
(७) पृष्ठ ४१ - पंक्ति २ - "खरापन" - यह शब्द ठीक नहीं । जैनों को तीसरा महाव्रत " श्रदत्तादान" या अचौर्य है, जिस के स्पष्ट अर्थ चोरी न करना है ।