Book Title: Bharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Author(s): Bhagmalla Jain
Publisher: Shree Sangh Patna

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Page 92
________________ (७०) भगवान वर्धमान ने कुछ साल इस गिरोह में गुजारे और बाद (इस को छाड़ कर ) नया फिरका कायम किया तो वह फिरका जैन मज़हब से अलहदा ही तो होगा न ? और अगर ऐसा है तो हम फिकरे का क्या मतलब होगा “हत्ता कि इस वक्त तक बर्धमान जैन मज़हब के सरकर दा गुरु माने जाने रहे . इस दूसरे पैरे ने तीसरे पैरे को भी बेमानी बना दिया। आप खुद ही अंदाज़ा लगो सकते हैं कि जब, लायक मुसनिफ के अपने लफज़ों में भगवान महावीर स्वामी के कई माल तक अपने मज़हब की तालीम देते रहने के बाद और बिलाख़िर “जिन" यानी फातह का लकब अख्तयार करने पर इसी नाम पर जैन मज़हब मशहूर हो गया तो इस के तो साफ माने यह हो जायंगे कि भगवान महावीर ने जिस नये फिरके की बुनियाद डाली वह तो दरअसल जैन मजहब है, जो अबतक इसी नाम से मौजद है, मगर भगवान् पारसनाथ के जिस फ़िरके से उन्होंने कताऽतअल्लुक किया वह जैन मज़हब से अलहदा कोई और फिरका होगा और यह बात दूसरे पैरे के फिकरा अव्वल के खिलाफ जायगी। अब रहा यह सवाल कि असल बात क्या है, वह तो यही है जैसा कि हम होईरोड्स हिस्टरी के मौके पर आप के पेशेनज़र कर चुके हैं। यानी यह कि जैन धर्म के बानी भगवान् ऋषभदेव थे जो

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