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(१४) ५-अजीव पदार्थों में आत्मा नहीं हुआ करती।जैन फिलास्फी में पदार्थों के जीव और अजीव स्पष्ट दो भेद हैं । उन का विश्वास ठीक वैसे ही है जैसे कि अब सर जगदीशचन्द्र बोस और दूसरे वैज्ञानिक मानने लगे हैं।
६-निःसंदेह दोनों संप्रदायों को अपनी २ धार्मिक पुस्तके है, परन्तु भाषामात्र का भेद है ओर विषय तो दोनों में एक ही प्रतिपादन किये गये हैं । श्वेतांबरों की पुस्तके प्रायः प्राकृत में हैं और दिगंबरो की संस्कृत में। ___ परन्तु लेखकों के अगले शब्द बड़ेही आपत्तिजनक और अनावश्यक हैं । क्या लेखक महानुभाव किसी भी धर्म की ऐसी दो शाखाओं का नाम लेसकते हैं जिनमें साधारण रूपमें छोटो २ बातों पर झगड़े नहीं होते रहते? तो क्या कभी किसी ऐतिहासिक ने इस प्रकार के शब्द कहने का दुस्सहास किया है ? या क्या कोई आजकल कर सकता है जबकि हिंदू मुसलमानों में एक दूसरे के विरुद्ध इतना जोश फैला हुआ है और विशेष कर स्कूलों में पढ़ाई जाने वालो किसी पुस्तक में ? क्या यह बतायेंगे कि श्वेतांबरों अथषा दिगंबरों को पुस्तकों में से कहीं एक दूसरे के विरुद्ध लड़ने झगड़ने का उपदेश दिया गया है। नहीं कदापि नहीं ? तो क्या आगे जाकर यह कहने में कि “एक जैन सब जीवों की रक्षा करता है । वह सब प्रकार से अपने पड़ोसी के भावों का सन्मान करता है" और जैनधर्म की