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श्वेताम्बर और दिगम्बर जैन मूर्तिपूजक हैं और स्थानकवासी नहीं । फिर इस बात पर उन के साथ मत्थापच्ची करने से क्या लाभ ? झगड़ा तो इस बातको है कि उन्हेंाने श्वेताम्बर और दिगम्बर जैनों पर यह दोषारोपण किया है कि उन्हें ने महावीर स्वामी के पश्चात् मूर्तिपूजा श्रारम्भ की । हम कहते हैं कि नहीं वे पहले से करते थे, क्योंकि मूर्तिपूजक जैनियों का ऐसा ही विश्वास है।
आप अब स्वयं ही समझ लेंगे कि हमारा उत्तर कहां तक सत्य, पक्षपातरहित और सरल है । और आपका उपालम्भ कहां तक उचित है ?
परन्तु इस से बढ़कर खेद की बात है कि आपने यह लिखते हुए भी कि "१ - सभापति महोदय ने इस इतिहास में से = बातें ऐसी छांट कर उस नोटिस में रक्खी हैं जिनसे जैन धर्म की अधिक हानि होगी । आपने ८ बातोंका उत्तर भी अच्छी तरहसे उस नोटिस में दिया है ।" २- हम नहीं चाहते हैं कि हम ऐसे महत्व भरे हुए सुधार के कार्यों में किसी तरह का झगड़ा उपस्थित करें ।” हमारे लेख को अपने पत्र में स्थान न दिया और अगले किसी श्रंक में, वह भी यदि अवसर मिला तो, छापने को कह दिया । क्या ही अच्छा होता यदि आप हमारे लेख को छाप देते, चाहे साथ में अपना यह नोट भी देते । यद्यपि हमारा विश्वास है कि इस