Book Title: Bharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Author(s): Bhagmalla Jain
Publisher: Shree Sangh Patna

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Page 26
________________ (२०) को। यह हमने मानो कि हमारी समाज में इस समय जीवन नहीं है। इससे वह सब सह रही है परन्तु उसकी इस कमजोरी से आप समान जीवन रखनेवालों को इस प्रकार लाभ उठाना किसी तरह से भी उचित नहीं है।" ___ हमें यह नोट देखकर कुछ खेद हुा । हमने निम्नलिखित उत्तर भेजना ही निश्चित किया जो 'प्रदर्शक' के वैशाख वदी ७ बुधवार सं०१६ः२ के अङ्क में पृष्ठ ३४० पर यूं छपा है: ध्यान दिया” प्रात्मानन्द जैनसभा अम्बाले का पत्र [प्रिय महाशय ! जयजिनेश्वरदेव ! ] जैन पथ प्रदर्शक ता० १-३-२५ पृष्ठ ३०% पर पाएका नोट, जो आपने हमारी सूचनार्थ लिखा है, देखा । इसके लिए हम आप के आभारी हैं। परन्तु खेद है कि हमारे लेखों से आपको दुःख हुआ, और वह भी अकारण ! हमने यह काम अन्यमतियोंके भनुचित आक्षेपों से जैन धर्म की रक्षा के निमित्त ही किया। हम इस बात को खूब समझते हैं कि ऐसे सुअवसरों पर घर में ही फूट डालना बुद्धिमत्ता नहीं। ___ श्राप लिखते हैं कि हम ने ७ वे सवाल के उत्तर में यह साबित करने की कोशिश की है कि जैन मूर्तिपूजक हैं । हम कहना चाहते हैं कि आप को भ्रम हुआ । हम नीचे मूल पंक्तियां ही लिखे देते हैं।

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