Book Title: Bharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Author(s): Bhagmalla Jain
Publisher: Shree Sangh Patna

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Page 25
________________ ( १६ ) ८ सभापति महोदय ने उस इतिहास में से = बातें ऐसी छांटकर उस नोटिस में रक्खी हैं जिनसे जैनधर्म की अधिक हानि होगी । आपने आठ बातों का उत्तर भी अच्छी तरह से उस नोटिस में दिया है, जिसको हम स्थान के अभाव से इस समय प्रकाशित करने में असमर्थ हैं । यदि अवसर मिला तो आगामी किसी अङ्क में प्रकाशित करेंगे परन्तु हम श्रात्मानन्द जैनसभा अम्बाला के मन्त्री - पदाधिकारियों का ध्यान ७ वै सवाल के उत्तर की ओर बैंचते हैं, जिसमें उन्हीं ने यह साबित करने की कोशिश की है कि जैन मूर्तिपूजक हैं । हम उक्त सभा के पदाधिकारियों से यह पूछना चाहते हैं कि यदि आपके इस उत्तर का खण्डन श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन संसार लिखकर पंजाब प्रांत के शिक्षाविभाग के अधिकारियों के पास भेज दें तो आपकी इन दूसरी बातों का क्या प्रभाव उन पर पड़े। ऐसे अवसरों पर कुछ विचार और विवेक के साथ काम लेना चाहिये । संतोष की बात तो यह होती जिस प्रकार मुखपत्ति के सम्बन्ध में जो उनके आठवें सवाल का उत्तर श्रापने दिया है उसी तरह से देते । हमें आशा है और पर्ण भरोसा है उक्त सभा के पदाधिकारी इस पर ज़रूर ध्यान देंगे। हम नहीं चाहते कि हम ऐसे महत्व भरे हुये सुधार के कार्यों में किसी तरह का झगड़ा उपस्थित करें । परन्तु हम अत को उसी श्र ेणी में हैं जिस श्रेणी में आप हैं । इसी कारण से हमको भी अपने धर्म का अभिमान है जैसाकि आप

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