Book Title: Bharatvarsh ka Itihas aur Jain Dharm
Author(s): Bhagmalla Jain
Publisher: Shree Sangh Patna

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Page 21
________________ (१५) शिक्षा सभी श्रोणियों के जैनियों के लिये मान्य है। उनका सब से बड़ा सिद्धान्त है:-"जितनी अधिक विनय से संभव हो सके अपना कर्तव्य पालन करो।" पूर्वापर विरोध तो नहीं आ जाता? इस के विरुद्ध परस्पर तीर्थ सम्बन्धी झगड़े होने पर भी दोनों संप्रदायों के अनुयायियों में मित्रता है, प्रेम है। वह आपस के धार्मिक और सामाजिक कार्यों में निःसंकोच भाग लेते हैं,अतः लेखकों का यह कथन सर्वदा अनधिकार चेष्टा है। ७-सुज्ञ लेखकों का यह कहना कि जैनियों ने भगवान महा. वीर स्वामी के पश्चात् मूर्ति पूजा आरम्भ को-वस्तुस्थिति के प्रतिकूल है। वे उनसे पहले भी ऐसा करते थे । प्राचीन इतिहास से इसके बहुत से उदाहरण मिलते हैं। और लग भग सभी मूर्ति पूजकों का ऐसा ही विश्वास है। परन्तु उनके कथन का दूसरा भाग लेखकों की सर्वथा नई खोज है । जैन धर्म के विरुद्ध वैसे तो बहुत कुछ कहा जा चुका है, परन्तु ऐसा आजतक कभी किसी ने नहीं कहा । इतिहास, साधारण विश्वास और जैनधर्म तो २४ तीर्थकर ही बतलाता है १२ नहीं। :-निःसंदेह जैनों की एक शाखा ऐसा करती है, परन्तु बाकी दो नहीं, अतः इन शब्दों से यह न समझना चाहिये कि सभी ऐसा करते हैं । बाकी दोनों अपने हाथ में कपड़े का

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