Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal

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Page 11
________________ (छह) पुराण-१६४, तीर्थंकर चरित्र-१६६, अन्य चरित्र-१७१, कथानक-१७४, नाटक१७६, साहित्य-शास्त्र-१८०, व्याकरण-प्राकृत १८१ व्याकरण-संस्कृत-१८४, छंद शास्त्रप्राकृत-१६०, छंद शास्त्र-संस्कृत-१६५, कोश-प्राकृत-१६५, कोश-संस्कृत१६६, अर्धमागधी प्राकृत अवतरण-२००, शौरसेनी प्राकृत अवतरण-२०३, महाराष्ट्री प्राकृत अवतरण-२०६, अपभ्रश अवतरण-२०६ । ३. जैन दर्शन पृष्ठ २१५-२७८ ___ तत्वज्ञान-२१५, जीव तत्व-२१५, जैन दर्शन में जीव-तत्व-२१७, अजीव तत्व-२२०, धर्म-द्रव्य-२२०, अधर्म-द्रव्य-२२१, आकाश-द्रव्य-२२१ काल-द्रव्य२२२, द्रव्यों के सामान्य लक्षण-२२३, आस्रव-तत्व-२२३, बन्ध तत्व-२२५, कर्मप्रकृतियां ज्ञानावरण कर्म-२२६, दर्शनावरणकर्म-२२६, मोहनीय कर्म-२२७, अन्तराय कर्म-२२८, वेदनीय कर्म-२२६, आयु कर्म-२२६, गोत्र कर्म-२२६, नाम कर्म-२२६, प्रकृति बन्ध के कारण-२३२, स्थिति बन्ध-२३४, अनुभाग बन्ध-२३५, प्रदेश बन्ध-२३६, कर्म सिद्धान्त की विशेषता-२३७, जीव और कर्मबन्ध सादि हैं या अनादि-२३८, चार पुरुषार्थ २३६, मोक्ष सच्चा सुख २४०, मोक्ष का मार्ग-२४१, सम्यग्दृष्टि-मिथ्यादृष्टि पुरुष-२४२, सम्यग्ज्ञान-२४३, मतिज्ञान २४४, श्रुतज्ञान-२४५, अवधिज्ञान-२४५, मनः पर्ययज्ञान-२४६, केवलज्ञान-२४६, ज्ञान के साधन-२४७, प्रमाण व नय-२४७, अनेकान्त व स्याद्वाद २४८, नय२४६, द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नय-२५१, चार निक्षेप-२५२, सम्यक् चारित्र२५३, अहिंसा-२५४, श्रावक धर्म-२५५, अहिंसाणु-व्रत-२५६, अहिंसाणुव्रत के अतिचार २५८, सत्याणुव्रत व उसके अतिचार-२५८, अस्तेयाणुव्रत व उसके अतिचार-२५६, ब्रह्मचर्याणुव्रत व उसके अतिचार-२५६, अपरिग्रहाणुव्रत व उसके अतिचार-२६०, मैत्री आदि चार भावनाएं-२६१ तीन गुणवत-२६१, चार शिक्षाव्रत-२६२, सल्लेखना-२६२, श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं-२६३, मुनिधर्म २६५, २२ परीषह-२६६, १० धर्म-२६८, १२ अनुप्रेक्षाएं-२६६, ३ गुप्तियां२७०, ६ प्रकार का बाह्य तप-२७१, ६ प्रकार का माम्यन्तर तप-२७१, ध्यान (आर्त और रौद्र)-२७२, धर्म ध्यान-२७२, शुक्ल ध्यान-२७३, गुणस्थान व मोक्ष-२७३, उपशम व क्षपक श्रेणियाँ-२७६ । ४. जैन कला पृष्ठ २७६-३७४ __जीवन और कला-२८१, जैन धर्म और कला-२८३, कला के भेदप्रभेद२८४, वास्तुकला में जैन निमितियों के आदर्श-२६२, मेरु की रचना २६३, नंदीश्वर द्वीप की रचना-२९४, समवसरण रचना-२६५, मानस्तम्भ-२६६, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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