Book Title: Bhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Author(s): Jagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
Publisher: Vishvavidyalay Prakashan

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भामिनी-विलास पण्डितराज और हिन्दी वाङ्मय पण्डितराजका स्थितिकाल वह काल था जबकि संस्कृत-साहित्यके ललित अंशोंको लेकर समृद्ध ब्रजभाषा पूर्ण उत्कर्षको प्राप्त हो चुकी थी। सूर, तुलसी और विहारी जैसे उच्चकोटिके कवियों द्वारा हिन्दीका पर्याप्त विकास हो चुका था। दरबारसे संबद्ध होनेके कारण उनका हिन्दीकवियोंसे भी संपर्क असम्भव नहीं था। हमें यह कहनेमें तनिक भी संकोच नहीं कि हिन्दी कवियोंका विशेषकर विहारीका प्रभाव उनपर अवश्य पड़ा, पण्डितराजके कई पद्योंको हम विहारीके हिन्दी पद्योंकी अविकल छाया कह सकते हैं। ___ इसीप्रकार अनुप्रासका प्रयोग संस्कृत-साहित्यमें बहुत प्राचीनकालसे चला ही आ रहा था, किन्तु पण्डितराजकी कवितामें पदान्तानुप्रासकी जो छटा है वह उस समय की ब्रजभाषाकी कवितासे अत्यन्त मिलती है । १. छिप्यो छबीलो मुंह लसै नीले आँचल चीर । मनों कलानिधि झलमल कालिन्दीके नीर ॥ ( विहारी) नीलाञ्चलेन संवृतमाननमाभाति हरिणनयनायाः । प्रतिविम्बित इव यमुनागभीरनीरान्तरेणाङ्कः ॥ (पण्डितराज) अमी हलाहल मदभरे श्वेत श्याम रतनार । जियत मुवत झुकि झुकि परत जेहि चितवत इकबार ॥ (बिहारी ) श्मामं सितं च सुदृशो न दृशोः स्वरूपं किन्तु स्फुटं गरलमेतदथामृतं च । नो चेत् कथं निपतनादनयोस्तदैव मोहं मुदं च नितरां दधते युवानः ॥ ( पण्डितराज) २. सा मदागमनबंहिततोषा जागरेण गमिताखिलदोषा । xx For Private and Personal Use Only

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