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मंथन
प्रोत्साहन देते रहते थे । उन्होंने श्वेताम्बर पुनमिया गच्छ के वाचक श्री हेमरत्नजी सं० १६४५ सादड़ी में 'गोराबादल कथा पद्मिनी चौपाई' नामक ग्रन्थ की रचना करायी थी, जैसा कि उक्त ग्रंथ की प्रशास्ति में कवि ने स्वयं लिखा है:
संवत सोलहसई पणयाल । सावण सुदि पंचम सुविशाल पुहवी पीठ धण पर गड़ी, सबलपुरी सोहे सादड़ी । प्रथवी परगट दांड · प्रताप, दिन दिन चढ़ते तेज विख्यात, तस मंत्री सद्बुद्धि निधान कावेड्या कुल तिलक समान । सामंधर मधुर भामाशाह, वैरी वंस विधंसण राह, तस लघु भाई ताराचन्द अवनि जाणि अवतारियो इन्द ध्र जिमि अविचल पालैधरा, सत्र सहु कीधा पाधरा । तस आदेस लहि सद्भाव, बादल बात रची सर्भाव । सुण्यो तिसो भाख्यो परबन्ध
सांम धरमवीर रस संबंध ।” + उपर्युक्त उद्धरण से ताराचन्द्र का सादड़ी का शासक होना और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना सिद्ध हो जाता है। साथ ही यह भी प्रमाणित होता है कि उसके यहाँ श्रेष्ठ कवियों को आश्रय मिलता रहता था।
+ वीर शासन १ दिसम्बर १९५२ पृष्ठ ७